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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, त्रयोदशी, गुरुवार, वि० स० २०७०
अहिंसा-धर्म
जो पुरुष काम,क्रोध और लोभ को पापो की खान समझकर उनका त्याग करके अहिंसा-धर्म
का पालन करता है, वह मोक्ष रूप सिद्धी को प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं
है । जो मनुष्य अपने आराम के लिए दीन-प्राणियो का वध करता है, वह मृत्यु के बाद
कभी सुखी नहीं हो सकता । मरने के बाद परमसुख उसी को मिलता ही, जो सभी प्राणियो को
अपने ही समान समझकर किसी पर भी क्रोध नहीं करता और किसी को भी चोट नहीं पहुचाता । जो
मनुष्य प्राणिमात्र को अपने ही समान सुख की कामना और दुःख की अनिच्छा करनेवाले
जानकर सबको समान दृष्टि से देखता है, वह महापुरुष देव-दुर्लभ ऊँची गति को प्राप्त
होता है ।
जिस काम को मनुष्य अपने लिये प्रतिकूल समझता है वह काम दुसरे किसी भी
प्राणी के लिये नहीं करना चाहिये । जो मनुष्य इसके विरुद्ध व्यवहार करता है वह पाप
का भागी होता है । मान-अपमान, सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय इनमे जैसे अपने को संतोष और
असंतोष होता है, वैसे ही दूसरो को भी होता होगा, यही समझकर व्यवहार करे । जो
मनुष्य हिंसा करता है, उसकी हिंसा होती है और जो रक्षण करता है, उसकी दूसरो के
द्वारा रक्षा होती है । अतएव हिंसा न करके सबकी रक्षा करनी चाहिये । जो मनुष्य
किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी हिंसा नहीं करता, वह सत्पुरुषो के बतलाये हुए
धर्म के समान संसार में प्रमाण रूप होता है । (महाभारत).....शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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