Sunday, 20 October 2013

वर्णाश्रम धर्म -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक कृष्ण, द्वितीया, रविवार, वि० स० २०७०

 

                    भगवान श्रीकृष्ण भक्तवर उद्धव जी से कहते है  शम, दम, तप, शौच, सन्तोष, क्षमा, कोमलता, मेरी भक्ति, दया और सत्य ये ब्राह्मण-वर्ण के स्वभाव है । तेज, बल, धैर्य, शूरवीरता, सहनशीलता, उदारता, पुरुषार्थ, स्थिरता, ब्रह्मन्यता (ब्राह्मण भक्ति) और ऐश्वर्य  ये क्षत्रिय-वर्ण के स्वभाव है । आस्तिकता, दानशीलता, दंभहीनता, विप्रपरायणता और लगातार धन-संचय करते रहना  ये वैश्य-वर्ण के स्वभाव है । ब्राह्मण, गौ और देवताओं की निष्कपट भाव से सेवा करना और उसी से जो कुछ मिल जाए, उसमे संतुस्ट रहना  ये शुद्र वर्ण के स्वभाव है । XXXXX अहिंसा, सत्य, अस्तेय, काम, क्रोध, और लोभ से रहित होना और प्राणियों की प्रिय-हितकारिणी चेष्टा में तत्पर रहना यह सभी वर्णों के धर्म है ।    

                               ब्रह्मचारी के धर्म

अब चारों आश्रमों में पहले ब्रह्मचारी के धर्म बतलाते है ।

जातकर्म आदि संस्कारों के क्रमसे उपनयन-संस्कार द्वारा दूसरा जन्म पाकर द्विज-कुमार (ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य-वर्ण का बालक) इन्द्रियदमन पूर्वक गुरुग्रह में वास करता हुआ गुरु द्वारा बुलाये जाने पर वेद का अधयन्न करे । ऐसे ब्रह्मचारी को चाहिये की मूँज की मेखला, मृगचर्म, दण्ड, रुद्राक्ष, ब्रह्मसूत्र, कमण्डलु और आप-से-आप बढ़ी हुई जटाओं को धारण करे, वस्त्रों को (शौकिनियों के लिये) न धुलवाये, रगीन आसन पर न बैठे तथा कुशाओं को धारण करे । स्नान, भोजन, होम, जप के समय मौन रहे; नख तथा कक्ष एवं उपस्थ के बालों को भी न कटवाये । शेष अगले ब्लॉग में ...

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram