Wednesday, 30 October 2013

माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक कृष्ण, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०

 
      माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।

(राग जंगला-ताल कहरवा)

माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।

खूअ रिझान्नँगी मैं तुमको, रचकर नये-नये नित ढंग॥

नाचूँगी, गाऊं गी, मैं फिर खूब मचान्नँगी हुड़दंग।
खूब हँसान्नँगी हँस-हँस मैं, दिखा-दिखा नित तूतन रंग॥

धातु-चित्र पुष्पों-पत्रोंसे खूब सजान्नँगी सब अङङ्ग-

मधुर तुम्हारे, देख-देख रह जायेगी ये सारी दंग॥
सेवा सदा करूँगी मनकी, भर मनमें उत्साह-‌उमंग।
आनँदके मधु झटकेसे सब होंगी कष्टस्न-कल्पना भङङ्गस्न॥

तुम्हें पिलान्नँगी मीठा रस, स्वयं रहँूगी सदा असङङ्गस्न।
तुमसे किसी वस्तु लेनेका, आयेगा न कदापि प्रसङङ्गस्न॥

प्यार तुम्हारा भरे हृदयमें, उठती रहें अनन्त तरंग।
इसके सिवा माँगकर कुछ भी, कभी करूँगी तुम्हें न तंग॥

माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।

खूअ रिझान्नँगी मैं तुमको, रचकर नये-नये नित ढंग॥
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पद-रत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!   
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram