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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक कृष्ण, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०
माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो,
रख लो संग।
(राग जंगला-ताल कहरवा)
माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।
खूअ रिझान्नँगी मैं तुमको, रचकर नये-नये नित
ढंग॥
नाचूँगी, गाऊं गी, मैं फिर
खूब मचान्नँगी हुड़दंग।
खूब हँसान्नँगी हँस-हँस मैं, दिखा-दिखा नित तूतन रंग॥
धातु-चित्र पुष्पों-पत्रोंसे खूब सजान्नँगी सब
अङङ्ग-
मधुर तुम्हारे, देख-देख रह जायेगी ये सारी दंग॥
सेवा सदा करूँगी मनकी, भर मनमें उत्साह-उमंग।
आनँदके मधु झटकेसे सब होंगी कष्टस्न-कल्पना भङङ्गस्न॥
तुम्हें पिलान्नँगी मीठा रस, स्वयं रहँूगी सदा
असङङ्गस्न।
तुमसे किसी वस्तु लेनेका, आयेगा न कदापि
प्रसङङ्गस्न॥
प्यार तुम्हारा भरे हृदयमें, उठती रहें अनन्त तरंग।
इसके सिवा माँगकर कुछ भी, कभी करूँगी तुम्हें न तंग॥
माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।
खूअ रिझान्नँगी मैं तुमको, रचकर नये-नये नित ढंग॥
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पद-रत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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