Friday, 1 November 2013

दिवाली -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक कृष्ण, त्रयोदशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
   
दिवाली --


                  दिवाली पर हमारे यहाँ प्रधानतः चार काम हुआ करते है- घर का कूड़ा-कचरा निकल कर घर को साफ करना और सजाना, कोई नई चीज खरीदना, खूब रोशनी करना और श्री लक्ष्मीजी का आह्वान तथा पूजन करना । काम चारो ही आवश्यक है; किन्तु प्रणाली में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता  है । यदि वह परिवर्तन कर दिया जाये तो दिवाली का महोत्सव बारहवें महीने न आ कर नित्य बना रहे और कभी उससे ऊबे भी नहीं !

                   पाठक कहेंगे की यह है तो बड़े मजे की बात परन्तु रोज रोज इतना खर्च कहा से आवेगा? इसका उतर यह है की फिर बिना ही रूपये-पैसे के खर्च के यह महोत्सव बना रहेगा और उनकी रौनक भी इससे खूब बढ़ी-चढ़ी रहेगी । अब तो उस बात को सुनने की उत्कंठा सभी के मन में होनी चाहिए । उत्कंठा हो या न हो,मुझे तो सुना ही देनी है-ध्यान से सुनिए

                        दिवाली पर हम कूड़ा निकालते है,परन्तु निकालते है केवल बाहर का ही । भीतर का कूड़ा ज्यो-का-त्यों  भरा रहता है, जिसकी गन्दगी दिनों दिन बढ़ती ही रहती है । वह कूड़ा रहता है-भीतर घर में,शरीर के अंदर मन में । कूड़े के कई नाम है-काम, क्रोध, लोभ, अभिमान, मद, वैर, हिंसा, ईर्ष्या, द्रोह, मत्सर आदि- ये प्रधान-प्रधान नाम है । इनके साथी और चेले-चांटे बहुत है । इन सबमे प्रधान तीन है-काम, क्रोध और लोभ । इनको साथियो सहित झाडू से झाड-बुहार बाहर कर निकाल कर जला देना चाहिए ।

                             कूड़े-कचरे में आग लगा देना अच्छा हुआ करता है । जहा यह कूडा निकला की घर सदा के लिए साफ़ हो गया । इसके बाद घर सजाने की बात रही । हम लोग केवल ऊपरी सजावट करते है जिसके बिगड़ने और नाश होने में देर नहीं लगती । सच्ची सजावट है । अन्दर के घर को दैवी सम्पदा के सुन्दर-सुन्दर पदार्थो से सजाने में । इनमे अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्यं, दया, शौच, मैत्री, प्रेम, संतोष, स्वाध्याय, अपरिग्रह, निराभिमानता, नम्रता, सरलता आदि मुख्य हैं । शेष अगले ब्लॉग में...

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
  नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!   
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Ram