Monday, 11 November 2013

एकमात्र भगवान् में ही राग करें -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, नवमी, सोमवार, वि० स० २०७०

 
एकमात्र भगवान् में ही राग करें -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ४.याद रखो -राग और द्वेष मनुष्यके बहुत बड़े शत्रु हैं, जो प्रत्येक इन्द्रिय के प्रत्येक विषयमें स्थित रहकर तुम्हारे जीवनसंगी बने तुम्हारे परम अर्थको निरंतर लूट रहे हैं राग-द्वेष से काम-क्रोध की उत्पत्ति होती है, जो समस्त पापों के मूल हैं
 

याद रखो -जिसके मनमें भोग-कामना है, वह कभी सच्चे अर्थ में सुखी नहीं हो सकता कामनाकी पूर्तीमें एक बार तो सुख की लहर-सी आती है, पर कामना ऐसी अग्नि होती है, जो प्रत्येक अनुकूल भोगोंको आहुति बनाकर अपना कलेवर बढ़ाती रहती है जितनी-जितनी कामनाकी पूर्ती होती है, उतनी-उतनी कामना अधिक बढती है कामना अभाव की स्थितिका अनुभव कराती है और जहां अभाव है, वहाँ प्रतिकूलता है और जहां प्रतिकूलता है वहाँ दुःख है

अतएव कामना कभी पूर्ण होती ही नहीं, और इसलिए मनुष्य कभी दुःख से मुक्त हो ही नहीं सकता कामना बड़े-से-बड़े वैभवशाली पुरुष को भी दीन बना देती है, कामना बड़े-से-बड़े विचारक और बुद्धिमान पुरुषके मनमें भी अशांति का तूफ़ान खड़ा कर देती है कामना की अपूर्ति में क्षोभ तथा क्रोध होता है, जो मनुष्य को विवेकशून्य बनाकर उसको सर्वनाश के पथपर तेजीसे आगे बढाता है इसलिए इन काम-क्रोध के मूल राग-द्वेष का त्याग करो

याद रखो -यदि राग-द्वेष का त्याग न हो तो उनके विषयों को तो जरूर बदल डालो राग करो-श्रीभग्वान् में; उनके स्वरुप-गुण-लीला में, उनके नाममें और उनमें आत्मसमर्पित उनके भक्तोंमें; द्वेष करो-अपने दुर्गुणोंमें, बुरे कामोंमें, पापोंमें और विषय-सुखकी कामनामें ।... शेष अगले ब्लॉग में ...         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram