Tuesday, 12 November 2013

एकमात्र भगवान में ही राग करें -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, दशमी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 
एकमात्र भगवान में ही राग करें -२-

गत ब्लॉग से आगे ...बस, फिर ये राग-द्वेष ही तुम्हारे परमअर्थके रक्षक और पोषक बन जायेंगे अग्नि से घरमें आग लगाकर सब कुछ भस्म हो जाता है और अग्निसे ही यज्ञ कर्म संपन्न होनेपर सब कुछ प्राप्त हो जाता है
 

याद रखो -भगवानमें राग होनेपर भगवदविरोधी अपने तन-मनके कार्योंमें द्वेष होगा ही जिनमें द्वेष होता है वे बुरे लगते हैं और मनुष्य उनका विनाश चाहता है अतएव भगवान में उत्पन्न राग स्वभावतः ही शरीर और मनसे होनेवाले दुष्कर्म का नाश कर देता है भगवान में राग ही परम-दुर्लभ भगवत प्रेम है  और पापोंमें द्वेष ही सच्चा वैराग्युक्त परम साधन है

 
याद रखो -भगवानमें तुम्हारा राग बढे, इसके लिए भगवान के स्वरुप, गुण, लीला, आदि का बार-बार श्रवण करो, कीर्तन करो, चिंतन करो और इसमें गौरव तथा शान्ति का अनुभव करो जितनी उनके प्रति श्रद्धा बढ़ेगी उतनी ही उनमें प्रीति बढ़ेगी


याद रखो – पूर्ण आत्म-समर्पण की लालसा जागृत होनेपर उसमें बड़ी-से-बड़ी भोगकामना तो रहती ही नहीं, मोक्ष-कामना भी छीप जाती है । एकमात्र भगवान् के परम पावन सुरेन्द्र-मुनीन्द्र वंदित चरण कमलोंकी शरण ही उसकी सारी कामना, वासना, इच्छा, अपेक्षा, स्पृहा, लालसा आदिका विषय हो जाती है ।

 
याद रखो -भगवान में पूर्ण आत्मसमर्पण की लालसा का उदय बहुत ऊंची साधना का फल है एवं स्वयं परम तथा चरम साधन है, जो भगवत्प्रेम स्वरुप सुदुर्लभ वस्तु प्रदान कराकर भगवान का निजजन बना देता है ।... शेष अगले ब्लॉग में .         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram