Wednesday, 13 November 2013

सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०

 
सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ५. याद रखो -तुम सबसे पहले स्वरूपतः नित्य एक आत्मा हो, फिर मनुष्य हो, फिर भारतवासी हो, फिर हिंदू हो, फिर अमुक प्रदेशवासी हो, फिर अमुक परिवारके सदस्य हो, फिर माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पौत्र, स्वामी-सेवक आदि कुछ हो

याद रखो -आत्माके अतिरिक्त ये सभी स्वरुप तुम्हारे यथार्थ स्वरुप नहीं हैं; ये तो अनित्य संसारके अनित्य क्षेत्रोंमें कामचलाऊ नाम-रूप हैं इन सबमें यथा-योग्य व्यवहार करके जीवन-यात्रा चलानी है पर यह सदा ध्यान रखना है की अपने इन विभिन्न नाम-रूपोंके अभिमानमें मनुष्येतर प्रानियोंकों, भारतके अतिरिक्त अन्यान्य देश्वासियोंकों, हिंदूके अतिरिक्त अन्यान्य धर्म-जातिवालोंको,अपने परिवारके अतिरिक्त अन्यान्य परिवारोंके सदस्योंको, अपने सिवा अन्य सबको तुम ‘पर’ कहीं न समझ बैठो और कहीं अपने कल्याण के मोह से दूसरों का अकल्याण चाहने और करने न लग जाओ

याद रखो -किसी भी दूसरेका अकल्याण अपना ही अहित है-वैसे ही,जैसे अपने एक ही शरीरके विभिन्न अंग अपना ही शरीर हैं किसीभी अंगपर चोट पहुँचाना अपने ही शरीर को चोट पहुँचाना है और कहीं भी चोट लगनेपर उसके दर्द का अनुभव अपनेको ही होता है इसी प्रकार एकही आत्माके ये सब विभिन्न नाम-रूप हैं इनमें कोई भी कभी भी न तो ‘पर’ है और न हो सकता है ।.....शेष अगले ब्लॉग में.         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram