Thursday, 14 November 2013

सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, द्वादशी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 
सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -इससे भी महत्व की बात यह है की आत्मारूप में स्वयं श्रीभगवान ही प्रकाशित हैं साथ ही चेतन आत्माके अतिरिक्त जड़ प्रकृतीके रूपमें भी उन्हींकी मंगलमयी लीला प्रकाशित है, जो उन लीलामय से सदा-सर्वदा अभिन्न है अतएव जड़-चेतन जो कुछ भी है-सभी श्रीभगवान ही हैं वे ही लीलामय विभिन्न नाम-रूप धारण करके लीला कर रहे हैं यदि तुम भक्त हो या बनना चाहते हो, अथवा एकमात्र सत्य के अन्वेषक हो तो तुम्हें सदा-सर्वदा सभी नाम-रूपोंमें एकमात्र भगवानको ही प्रकट समझकर सदा सभीका हित, सभीका कल्याण चाहना-करना चाहिए
 

याद रखो -किसीभी प्राणीका असत्कार करना, किसीका अहित करना अथवा दुःख पहुँचाना अपने परमाराध्य भगवानका ही अहित-असत्कार करना है और भगवानको ही दुःख पहुँचाना है तथा यह महापाप है; अतएव इससे सदा बचे रहो-सदा सावधानी के साथ इस प्रकार की कोई भी चेष्ठा मत करो

 
याद रखो -जो समस्त नाम-रूपोंवाले प्राणियों में भगवान को देखकर सदा-सर्वदा सबका सम्मान करता है, सबकी सेवा करता है, सबका हित करता है, उसके द्वारा सदा भगवान ही सम्मानित, सेवित, सुखी होते हैं और हित प्राप्त करते हैं वह सदा भगवानकी ही पूजा करता है भगवान उसकी इस नित्य-पूजा से परम प्रसन्न होकर उसे अपना स्वरुप दान देते हैं
 

याद रखो -यदि सबमें अपने आत्मा को समझकर सबका सम्मान, सेवा और हित करते हो, तबतो सदा ही आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है और सदा ही आत्मरमण करते हुए तुम अपने स्वरूपमें स्थित रहते हो .. शेष अगले ब्लॉग में .          

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     

 
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Ram