Friday, 15 November 2013

सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, त्रयोदशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 
सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ६. याद रखो -सर्वत्र प्रभुकी ही सत्ता शक्ति, विभूति फैली हुयी है – सब प्रभु की ही अभिव्यक्ति है अतएव ऐसा अनुभव करो की तुम्हारे अंदर नित्य-निरंतर प्रभुकी सत्ता, शक्ति और विभूति भरी है सदा इस सत्यके दर्शन करो
 

याद रखो -तुम्हारे जीवनमें सदा-सर्वदा निरंतर प्रभुका अत्यंत मधुर संगीत बज रहा है; ऐसा अनुभव करनेपर तुम किसी भी स्तिथिमें भय का अनुभव नहीं करोगे
 

याद रखो -प्रभु के साथ नित्य-नित्य सम्बन्ध की अनुभूति हो जानेपर अहंता तथा ममताके – ‘मैं’ तथा ‘मेरे’ के सारे पदार्थ बनें या बिगडें, जियें या मरें, उससे तुम्हारा कुछ न बिगडेगा, न तुम्हें सुख-दुःख ही होंगे   तुम नित्य हर हालत में परमानंद में निमग्न रहोगे

 
याद रखो -यहाँ जो कुछ है या जो कुछ होता है, सब प्रभु हैं और प्रभु की लीला है प्रभु स्वयं ही सारी लीला बनकर लीलायमान होते हैं अतएव लीलामयमें और उनकी लीलामें कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही है वे ही निरंतर तुम्हारे भीतर- बाहर बसे हुए लीला करते रहते हैं

 
याद रखो -जो नित्य-निरंतर बाहर और भीतर केवल उन प्रभु को ही देखता है, वह वास्तव में उन्हीं में निवास करता है और भगवान तोह उसमें है ही वे सदा हैं, सर्वथा हैं, सर्वत्र हैं वे ही अत्यंत दूर हैं और वे ही अत्यंत समीप हैं उनके सिवा अन्य कुछ भी है ही नहीं .. शेष अगले ब्लॉग में .         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram