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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक शुक्ल, त्रयोदशी, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -१-
गत
ब्लॉग से आगे ... ६. याद रखो
-सर्वत्र प्रभुकी ही सत्ता शक्ति, विभूति फैली हुयी है – सब
प्रभु की ही अभिव्यक्ति है । अतएव ऐसा अनुभव करो की तुम्हारे
अंदर नित्य-निरंतर प्रभुकी सत्ता, शक्ति और विभूति भरी है । सदा इस सत्यके
दर्शन करो ।
याद रखो -तुम्हारे जीवनमें सदा-सर्वदा निरंतर प्रभुका अत्यंत मधुर संगीत बज रहा
है; ऐसा अनुभव करनेपर तुम किसी भी स्तिथिमें भय का अनुभव नहीं करोगे ।
याद रखो -प्रभु के साथ नित्य-नित्य सम्बन्ध की अनुभूति हो जानेपर अहंता तथा
ममताके – ‘मैं’ तथा ‘मेरे’ के सारे पदार्थ बनें या बिगडें, जियें या मरें, उससे
तुम्हारा कुछ न बिगडेगा, न तुम्हें सुख-दुःख ही होंगे । तुम नित्य हर हालत में परमानंद में निमग्न
रहोगे ।
याद रखो -यहाँ जो कुछ है या जो कुछ होता है, सब प्रभु हैं और प्रभु की लीला है । प्रभु स्वयं ही
सारी लीला बनकर लीलायमान होते हैं । अतएव लीलामयमें और उनकी लीलामें कोई
भेद नहीं है, दोनों एक ही है । वे ही निरंतर तुम्हारे भीतर- बाहर
बसे हुए लीला करते रहते हैं ।
याद रखो -जो नित्य-निरंतर
बाहर और भीतर केवल उन प्रभु को ही देखता है, वह वास्तव में उन्हीं में निवास करता
है और भगवान तोह उसमें है ही । वे सदा हैं, सर्वथा हैं, सर्वत्र
हैं ।
वे ही अत्यंत दूर हैं और वे ही अत्यंत समीप हैं । उनके सिवा अन्य
कुछ भी है ही नहीं ।..
शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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