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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार,
वि० स० २०७०
सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -२-
गत
ब्लॉग से आगे ... याद रखो -मिथ्या मोह तथा भ्रमसे ही प्राकृतिक पदार्थोंमें तुम उनकी सत्ता, शक्ति
तथा विभूति मानकर उनका सेवन करते हो और इसीसे बार-बार घोर अशांतिका अनुभव करते हो । इसी भ्रम के कारण
तुम शोक, विषाद का अनुभव करते हो और इसी भ्रम से तुम दिन-रात, अहंता-ममता,
वासना-कामना, आसक्ति-लोभ तथा क्रोध-हिंसाकी अग्निमें अनवरत जलते रहते हो ।
याद रखो -एक प्रभु सत्ता ही नित्य-सत्य है, सत्य-स्वरुप है । उन्ही में
सदा-सर्वदा अपनेको मिलाए रखना चाहिए । उन्हीं का सदा आश्रय करना चाहिए । वे ही सारी
शान्ति, आनंद और सुख के एक मात्र मूल स्तोत्र हैं, वे ही निर्मल – शान्ति तथा सुख
के अनंत समुद्र हैं ।
तुम अपने जीवनमें नित्य उन्हीं आत्यंतिक शान्ति तथा सुख के स्वरुप भगवान से चिपटे
रहो ।
एक क्षण के लिए भी उनसे विलग होने की कल्पना तक मत करो ।
याद रखो -उन प्रभु को कहीं से आना नहीं हैं । वे सदा-सर्वत्र
वर्तमान हैं ।
ऐसा कोई देश-काल-वास्तु है ही नहीं जिसमें वे न हों । उन्हींकी सत्ता
से सबकी सत्ता है, उन्हीं की शक्ति से सब शक्तिमान हैं, उन्हीं की विभूति से सबमें
विभूति हैं ।
याद रखो -प्राकृतिक
पदार्थ बनने तथा नष्ट होने वाले हैं । इनका सृजन-संहार
होता रहता है ।
प्रकृति की प्रत्येक वस्तु अनित्य और अपूर्ण है; परन्तु भगवान अनादी, अनंत, नित्य
वर्तमान हैं ।
वे सदा स्वरुप से ही वर्तमान हैं । तुम उन्हीं का आश्रय करो । उन्हींकी सत्ता
में अपनी सत्ता को मिला दो । .. शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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