Saturday, 16 November 2013

सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०७०


सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -मिथ्या मोह तथा भ्रमसे ही प्राकृतिक पदार्थोंमें तुम उनकी सत्ता, शक्ति तथा विभूति मानकर उनका सेवन करते हो और इसीसे बार-बार घोर अशांतिका अनुभव करते हो इसी भ्रम के कारण तुम शोक, विषाद का अनुभव करते हो और इसी भ्रम से तुम दिन-रात, अहंता-ममता, वासना-कामना, आसक्ति-लोभ तथा क्रोध-हिंसाकी अग्निमें अनवरत जलते रहते हो

 
याद रखो -एक प्रभु सत्ता ही नित्य-सत्य है, सत्य-स्वरुप है उन्ही में सदा-सर्वदा अपनेको मिलाए रखना चाहिए उन्हीं का सदा आश्रय करना चाहिए वे ही सारी शान्ति, आनंद और सुख के एक मात्र मूल स्तोत्र हैं, वे ही निर्मल – शान्ति तथा सुख के अनंत समुद्र हैं तुम अपने जीवनमें नित्य उन्हीं आत्यंतिक शान्ति तथा सुख के स्वरुप भगवान से चिपटे रहो एक क्षण के लिए भी उनसे विलग होने की कल्पना तक मत करो

 
याद रखो -उन प्रभु को कहीं से आना नहीं हैं वे सदा-सर्वत्र वर्तमान हैं ऐसा कोई देश-काल-वास्तु है ही नहीं जिसमें वे न हों उन्हींकी सत्ता से सबकी सत्ता है, उन्हीं की शक्ति से सब शक्तिमान हैं, उन्हीं की विभूति से सबमें विभूति हैं

 
याद रखो -प्राकृतिक पदार्थ बनने तथा नष्ट होने वाले हैं इनका सृजन-संहार होता रहता है प्रकृति की प्रत्येक वस्तु अनित्य और अपूर्ण है; परन्तु भगवान अनादी, अनंत, नित्य वर्तमान हैं वे सदा स्वरुप से ही वर्तमान हैं तुम उन्हीं का आश्रय करो उन्हींकी सत्ता में अपनी सत्ता को मिला दो .. शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     

 
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Ram