Thursday 21 November 2013

संतका संग एवं सेवन करें -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष कृष्ण, चतुर्थी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 
संतका संग एवं सेवन करें -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ९. याद रखो -मनुष्य जीवनकी चरम तथा परम सफलतारूप भगवत प्राप्तिके लिए प्रमुख साधनोंमें एक श्रेष्ठ साधन है – भगवत्प्राप्त पुरुषका, संतका संग, उसका सेवन संग तथा सेवन का अर्थ ‘साथ रहना’ और ‘शारीरिक सेवा’ करना भी होता है परन्तु भाव-रहित ह्रदयसे केवल साथ रहने अथवा किन्हीं सांसारिक मनोरथों को मनमें रखकर शारीरिक सेवा करनेसे बहुत ही कम लाभ होता है

 
याद रखो -संग वही है जिसमें उन संत पुरुषके विचारों, भावों, उपदेशों तथा उनके द्वारा प्राप्त तत्त्व-विचारोंका नित्य मनन होता रहे और सेवन वह है जिसमें इन सबका जीवनमें विकास हो जाए इसीके लिए सदा सावधान तथा प्रयत्नशील रहना चाहिए

 
याद रखो -संतका संग-सेवन यदि लौकिक कामनाको लेकर किया जाता है तो वह ऐसा ही है, जैसे अमूल्य हीरे-रत्न को छोडकर कांच की कामना करना यही नहीं, वस्तुतः सांसारिक भोग निश्चित दुःख-परिणामी और आत्माका पतन करनेवाले हैं – इसीलिए भोग-कामना की पूर्ती के लिए संतका संग तथा सेवन तो पवित्र अमृत के बदले हलाहल विष मांगनेके समान हैं यद्यपि संतसे विष मिलता नहीं, क्योंकि उनमें विष है ही नहीं, तथापि लौकिक भोग-कामी साधक परम परमार्थ-धनसे तो दीर्घकाल तक वंचित रह ही जाता है अतएव संतका संग और सेवन केवल भगवत-प्राप्ति के लिए अथवा उस संतकी संतुष्टि के लिए ही करो

 
याद रखो -संतका संग और सेवन यदि भगवत-प्राप्तिके शुद्ध-भावसे होगा तो निश्चय ही – साधक की स्तिथि तथा साधनकी गतिके अनुसार – उसको परमार्थ-पथपर प्रगतिके अनुभव होने लगेंगे और वह उत्तरोत्तर आगे बढ़ता चला जाएगा ।.... शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram