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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, चतुर्थी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
संतका संग एवं सेवन करें -१-
गत
ब्लॉग से आगे ... ९. याद रखो
-मनुष्य जीवनकी चरम तथा परम सफलतारूप भगवत प्राप्तिके लिए प्रमुख
साधनोंमें एक श्रेष्ठ साधन है – भगवत्प्राप्त पुरुषका, संतका संग, उसका सेवन । संग
तथा सेवन का अर्थ ‘साथ रहना’ और ‘शारीरिक सेवा’ करना भी होता है । परन्तु भाव-रहित ह्रदयसे केवल साथ रहने अथवा किन्हीं सांसारिक मनोरथों को मनमें
रखकर शारीरिक सेवा करनेसे बहुत ही कम लाभ होता है ।
याद रखो -संग वही है जिसमें उन संत पुरुषके विचारों, भावों, उपदेशों तथा उनके
द्वारा प्राप्त तत्त्व-विचारोंका नित्य मनन होता रहे और सेवन वह है जिसमें इन सबका
जीवनमें विकास हो जाए । इसीके लिए सदा सावधान तथा
प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
याद रखो -संतका संग-सेवन यदि लौकिक कामनाको लेकर किया जाता है तो वह ऐसा ही है,
जैसे अमूल्य हीरे-रत्न को छोडकर कांच की कामना करना । यही नहीं,
वस्तुतः सांसारिक भोग निश्चित दुःख-परिणामी और आत्माका पतन करनेवाले हैं – इसीलिए भोग-कामना की पूर्ती के
लिए संतका संग तथा सेवन तो पवित्र अमृत के बदले हलाहल विष मांगनेके समान हैं । यद्यपि संतसे विष
मिलता नहीं, क्योंकि उनमें विष है ही नहीं, तथापि लौकिक भोग-कामी साधक परम
परमार्थ-धनसे तो दीर्घकाल तक वंचित रह ही जाता है । अतएव संतका संग
और सेवन केवल भगवत-प्राप्ति के लिए अथवा उस संतकी संतुष्टि के लिए ही करो ।
याद रखो -संतका संग और
सेवन यदि भगवत-प्राप्तिके शुद्ध-भावसे होगा तो निश्चय ही – साधक की स्तिथि तथा
साधनकी गतिके अनुसार – उसको परमार्थ-पथपर प्रगतिके अनुभव होने लगेंगे और वह उत्तरोत्तर
आगे बढ़ता चला जाएगा ।....
शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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