Saturday, 23 November 2013

संतका संग एवं सेवन करें -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष कृष्ण, षष्ठी, शनिवार, वि० स० २०७०


संतका संग एवं सेवन करें -३-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -उपर्युक्त लक्षण जीवनमें प्रकट होने लगें तो समझो की वास्तवमें ही संतका संग तथा सेवन हो रहा है जैसे सूर्यके उदय होनेपर प्रकाश का होना अनिवार्य तथा स्वयं-सिद्ध प्रत्यक्ष है, वैसे ही संतके संग तथा सेवन से उपर्युक्त भावों तथा गुणों का प्रकाश अनिवार्य, स्वयंसिद्ध तथा प्रत्यक्ष होता है

 
याद रखो -संतका संग और सेवन करनेपर भी यदि उपर्युक्त लक्षणोंका उदय न होकर उसके विपरीत आसुरी संपत्ति का विकास तथा विस्तार, भोगोंमें तथा पापोंमें रूचि, शास्त्र-निषिद्ध कर्मोंमें राग, पर-अहित में प्रसन्नता, विषय-चिंतन आदि होते हैं तो समझना चाहिए की या तो जिनको संत माना गया है, वे संत नहीं है अथवा उनका संग और सेवन न करके उनके नामपर विषय-संग तथा विषय-सेवन ही किया जा रहा है; भगवत-प्राप्तिका उद्देश्य ही नहीं है .... शेष अगले ब्लॉग में .         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram