Sunday 3 November 2013

दिवाली -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक कृष्ण, अमावस्या, दीपावली, रविवार, वि० स० २०७०

  

दिवाली --

 
             गत ब्लॉग से आगे....जब समस्त जगत की घोर अमावस्या का नाश करने वाले भगवान् भास्कर, सुधावृष्टि से संसार का पोषण करने वाले चंद्रदेव और जगत के आधार अग्नि देवता उन्ही के प्रकाश से प्रकाशित होते है – इन तीनो का त्रिविध प्रकाश उन्ही के प्रकाशाम्बुधि का एक क्षुद्र कण है, तब जहा वह स्वयं आ जाए,वहा के प्रकाश का तो ठीकाना ही क्या ! उनका वह प्रकाश केवल यहाँ तक परिमित नहीं है । ब्रह्मा की जगत-उत्पादनी बुधि में उन्ही के प्रकाश की झलक है । शिवकी संहार-मूर्ति में भी उन्ही की प्रकाश का प्रचण्ड रूप है । ज्ञानी मुनियों के ह्रदय भी उसी अलोक-कण से आलोकित है । जगत के समस्त कार्य,मन-बुद्दी की समस्त क्रियाये उसी नित्य प्रकाश के सहारे चल रही है |

              अतएव पहले काम,क्रोध,लोभ रूप कूड़े को निकल कर  घर साफ़ कीजिये,फिर देवी सम्पति की सुदर सामग्रियो से उसे सजाइय । तदन्तर प्रेम रुपी नित्य नवीन वस्तु का संग्रह कीजिये और उससे लक्ष्मीपति श्री नारायणदेव को वशकर ह्रदय के गम्भीर अन्तस्थल में विराजित कीजिये ,फिर देखिये-महालक्ष्मी देवी और अखंड अपार अलोकिक राशी स्वयमेव चली आएगी ! देवी का अलग आवाहन करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी ।

                हां, एक यह बात आप और पूछ सकते है की श्री नारायण को वश में कर देने वाला वह प्रेम कहा, किस बाजार में मिलता है ? इसका उत्तर यह है की वह किसी बाजार में नहीं मिलता –“प्रेम न वाणी निपजे,प्रेम न हाट बिकाय ।” उसका भंडार तो अपने अंदर ही है । ताला लगा है तो उसको खोल लीजिये,खोलने का उपाय–चाभी श्री भगवान्नाम चिंतन है । प्रेम का कुछ अंश बाहर भी है परन्तु वह जगत के जड़-पदार्थो में लगा रहने से मलिन हो रहा है । उसका मुख श्री नारायण की और घुमा दीजिये । वह भी दिव्य हो जायेगा । उसी प्रेम से भगवान वश में होंगे । फिर लक्ष्मी-नारायण दोनों का एक साथ पूजन कीजियेगा । इस तरह नित्य ही दिवाली बनी रहेगी । टका लगेगा न पैसा,पर काम ऐसा दिव्य बनेगा की हम सदा के लिए सुखी – परम सुखी हो जायेंगे । इसी को कहते है –

‘सदा दिवाली संत के आठों पहर आनंद

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

  नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!   
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Ram