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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक शुक्ल, प्रतिपदा, सोमवार,
वि० स० २०७०
भगवान शिव
सच्चिन्दनान्द्घन, सर्वान्तर्यामी, सर्वाधार, सर्व्गुन्सम्पन्न, गुणातीत,
अनादी, अनन्त भगवान शिव के सम्बन्ध में क्या लिखा जाये । कोई शिव-तत्व के ज्ञाता
और शिव के परम भक्त ही शिवतत्व और शिव-स्वरुप पर भगवान शिव की कृपा से कुछ लिख
सकते है । तथापि अपनी लेखनी तथा वाणी को पवित्र करने के लिए दो-चार शब्द यहाँ लिखे
जा रहे है । गुरुजन क्षमा करेंगे ।
1. भगवान शिव कल्याण स्वरुप,
विज्ञानानन्दघन परमात्मा है, वे स्वयं ही अपने ज्ञाता है, अनिर्वचनीय है, अकल है,
मन और बुद्धि के अतीत है ।
2. वही अपने शक्ति द्वारा जगत का
सूत्रपात करते है, वही ब्रह्मा रूप से
रचते है, विष्णु रूप से पालन करते है और रूद्र रूप से संघार करते है और
अनन्त रुद्रों के रूप में जगत में फैले हुए है । वे सब रूपों में भासते है, सब
रूपों में प्रगट है । उन्हीं से सबकी उत्पत्ति है, उन्ही में निवास है और उन्हीं
में सब लय होते है । यह उत्पत्ति, पालन और विनाश भी उनकी लीलामात्र है । वही सब
कुछ है और साथ ही सब कुछ से विलक्षण भी है ।
3. शिव सर्वव्यापी, सर्वेश्वर,
सर्वोपरि, सर्वरूप, सर्वग्य, सर्वन्त्चक्शु, सर्वातर्यामी, सर्वमय, सर्वसमर्थ,
सर्वाश्रय, शक्तिपति, नित्य, शुद्ध-बुद्ध-ज्ञानस्वरूप, ‘सत्यं-शिवम्-सुन्दरम’ है ।
वे निर्गुण-सगुण, निराकार, साकार हैं, उभयातित है ।
4. वे माता-पिता, सुह्रद, स्वामी, सखा,
न्यायकारी, पतितपावन दीनबन्धु, परम्दयामय, भक्तवत्सल, अशरण-शरण, अति उदार,
सर्वस्वदानी, आशुतोष, सम, उदासीन, पक्षपातहीन, शुभप्रेरक, अशुभनिवारक,
योगक्षेमवाहक, प्रेममय, भूतवत्सल, शमशानविहारी, कैलाशनिवासी, हिमालयनिवासी,
योगीश्वर और महामायावी है ।
5. वे बहुत शीघ्र प्रसन्न होते है । ‘नम: शिवाय’ उनका प्रधान मन्त्र है ।
आबाल-वृद्ध-वनिता, ब्राह्मण, सूद्र, सभी इसका श्रद्धापूर्वक जप करके अपना मनोरथ
सिद्ध कर सकते है ।
6. शिवलिंग-पूजा अश्लील नहीं है, यह
परम रहस्यमय तत्व है । शिवकृपा से रहस्यका ज्ञान हो सकता है । भक्ति-श्रद्धा
पुर्वक पूजा करनी चाहिये ।
7. शिवनिन्दा करना और सुनना महापाप
है, अतएव उससे सर्वथा बचना चाहिये ।
8. शिव को परात्पर ब्रह्म मानते हुए
शिव, विष्णु, ब्रह्मा में भेद मानना अमंगल का सूचक है । तीनो ही एकरूप है, तीनो की
उपासना एककी ही उपासना है ।
9. शिवतत्व जानने के लिए पक्षपात
छोड़कर शिवपुराण आदि का अधयन्न, मनन करना चाहिये ।
10. ‘शिव’ नाम का जप प्रेमसहित निष्काम
भाव से सदा करना चाहिये।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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