Thursday, 5 December 2013

प्रार्थना -६-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष शुक्ल, तृतीया, गुरूवार, वि० स० २०७०

 प्रार्थना -६-

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हे प्रभो ! जैसे चन्द्रकान्तमणि चन्द्रकिरणोंका योग प्राप्त करते ही द्रवित होकर रस बहाने लगती है, वैसे ही हे अनन्त सुधाकरों को सुधा दान देने वाले सुधासागर ! मेरा हृदय चन्द्रकान्तमणि के सामान बना दो, जो तुम्हारे गुणनामरुपी सुधाभरी शशि-किरणों का संयोग पाते ही द्रवित होकर बहने लगे !

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हे प्रभों ! चुम्बक उसी लोहे को अपनी और खींचता है, जो निखालिस होकर उसके सामने आता है  । आप भी हे कृपासागर ! समस्त अभिमानों के मिश्रणसे रहित कर दीनहीन निखालिस लोहा बना दो, जो तुम्हारे आकर्षक कृष्णनामचुम्बक को पाते ही दौड़कर उसमे सदा के लिए चिपट जाय ।

 श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, प्रार्थना पुस्तक से, पुस्तक कोड ३६८, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!   
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Ram