Wednesday, 1 January 2014

दहेज़-प्रथा और हमारा कर्तव्य


     

।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

पौष कृष्ण, अमावस्या, बुधवार, वि० स० २०७०

 
दहेज़-प्रथा और हमारा कर्तव्य    

                    मेरी समझ में अपनी कन्या को दहेज़ देना बुरी चीज नहीं है, वरं विवाह का एक आवश्यक अंग है । क्योकि कन्या को इसी रूप में कुछ मिलता है । परन्तु हिन्दू-समाज में इस समय जिस प्रकार से कन्या के पिता को बाध्य होकर दहेज़ देना पड़ता है, वह तो पाप है । पहले से सौदा तय किया जाता है, मोल-तोल होता है और कन्या के पिता से अधिक-से-अधिक लूटने की चेष्टा की जाती है । परिणामस्वरुप लडकियाँ युवती हो जाती है, उनके विवाह नहीं हो पाते एवं यदि विवाह हो भी जाता है तो वर के माता-पिता के द्वारा कन्या को अपने माता-पिता के नाम की गंदी गालियाँ सुननी पड़ती हैं । कन्या के अभिभावको की बड़ी बुरी दशा होती है और उन्हें जीवन भर ऋणी रहना पड़ता है । यह प्रत्यक्ष पाप है । इसको दूर करने का उपाय तो यही है की वरपक्ष वाले दहेज लेना बंद कर दे । कम-से-कम, सयाने लड़कों को इस त्याग के लिए तैयार होना चाहिये और प्रतिज्ञा करनी चाहिये की हम अपना विवाह तभी करवावेंगे, जब दहेज़ नहीं लिया जायेगा ।     
 

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, दाम्पत्य-जीवन का आदर्श पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram