Monday, 13 January 2014

मृत्युंजययोग -१-


       
।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, त्रयोदशी, सोमवार, वि० स० २०७०
 
मृत्युंजययोग -१-
जिस प्रकार महाभारत में अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्णने गीताका उपदेश किया था, उसी प्रकार श्रीद्वारकापुरी में उद्धवजीको भी उपदेश प्रदान किया । उक्त उपदेश में कर्म, ज्ञान, भक्ति, योग आदि अनेक विषयों को भगवान् ने बड़ी ही विशद व्याख्या की है । अन्तमें योग का उपदेश हो जाने के बाद उद्धवने भगवान् से कहा-‘प्रभो ! मेरी समझ में आपकी यह योगचर्या साधारण लोगों के लिए भी दुसाध्य है, अतएव, आप कृपापूर्वक कोई ऐसा उपाय बतलाईये जिससे सबलोग सहज ही सफल हो सके ।’  यानी जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिए छुटकर भगवान् को पा जाता है । इसलिये इसका नाम ‘मृत्युंजययोग’ है ।
भगवान् ने कहा –
मन के द्वारा निरन्तर मेरा विचार और चित्त के द्वारा निरन्तर मेरा चिन्तन करने से आत्मा और मन का मेरे ही धर्म में अनुराग हो जाता है । इसलिये मनुष्य को चाहिये की शनै-शनै: मेरा स्मरण बढाता हुआ ही सब कर्मों को मेरे लिए ही करे । जहाँ मेरे भक्त साधुजन रहते हो, उन पवित्र स्थानों में रहे और देवता और असुर तथा मनुष्यों में से जो मेरे अनन्य भक्त हो चुके है, उनके आचरणों  का अनुकरण करे । अलग या सबके साथ मिलकर प्रचलित पर्व, यात्रा आदि में महोत्सव करे । यथाशक्ति ठाट-बाट से गान, वाध, कीर्तन आदि करे-कराये । शेष अगले ब्लॉग में...
 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram