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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, प्रतिपदा, शुक्रवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -२-
गत ब्लॉग
से आगे......भीख के लिए ही
भगवान् ने हमे अन्त:करणरुपी भीख की झोली दी है, परन्तु भीख माँगना नही जानते ।
इसीसे संसार के कीचड़ से सने हुए घृणित चावलों की कनी से ही झोली भर रहे है । जिस
पवित्र अन्न से अमृतपूर्ण भोजन बन सकता था, उसका तो एक कण भी हमे नहीं मिला ।
आओं भिखारी ! एक बार
कल्पतरु के नीचे खड़े हो मनचाही चीज माँग लो ! सदा के लिए माँग लो ! अपने रीते जीवन-कमण्डलु को अमृत रस से भर लों ।‘माँ’,
‘माँ’ पुकारकर, ‘प्राणप्रिय प्रियतम’
पुकारकर, ‘जगतपति’ के नाम से पुकारकरवाणी सफल कर लो ! उस त्रिभुवन-मोहन रूप की
माधुरीधारा से नयनो को धो डालों, दर्शन की तृष्णा मिटा लो ।
अपने मन, प्राण और
इन्द्रियसमूह के प्रत्येक परमाणु को सुधासिन्धु के बिन्दुपान से मतवाला बना दो ।
माँग लो, इस मनुष्य शरीर के रहते-रहते ही । फिर सूअर होकर माँगना न पड़े, वहाँ तो
विष्ठाकी ही भीक मिलेगी । अरे मनुष्य ! जल्दी करों, ‘नीके दिन बीते जा रहे है ।’
मनुष्य-वृतियों से पूर्ण अन्तकरणरुपी पात्र में ही उस राज-राजेश्वर से मन की वस्तु
माँग कर सदा के लिए तृप्त हो जाओं ! अपने इस पवित्र पात्र को उसके प्रसाद से भर लो
। तुम्हारी अनन्तकाल की कमी और कामना सदा के लिए पूरी हो जाएगी । अच्छे अवसर की
प्रतीक्षा में जन्म को न गवाओं ......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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