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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, द्वितीया, शनिवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -३-
गत ब्लॉग
से आगे.... भिखारी पर ही भगवान्
की कृपा हुआ करती है । दीनता ही भगवान् की
कृपादृष्टिको आकर्षित करती है, आभाव ही भावशक्तिका आवाहन करता है । सर्वशून्य
दरिद्रता ही दया के पूर्ण प्रकाश का प्रधान कारण है । अतएव सच्चा भिखारी बन सकना
दुर्दशा की बात नही, किन्तु बड़े सोभाग्य का विषय है परन्तु प्रकृत भिक्षुक बनना
बहुत ही कठिन है ।
ऐसा होने के लिए अभिमान को भगा देना पड़ता है, अहंकार को भगा
देना पड़ता है, अहंकार को चूर्ण कर देना पड़ता है । जिसका ह्रदय अभिमान से भरा पड़ा
है वह क्या कभी यथार्थ अभावग्रस्त भिखारी बन सकता है ? अभिमान से अभिभूत ह्रदय में
क्या कभी दीनता टिक सकती है ? महाप्रभु कहते है-
तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना ।।
तृणकी
अपेक्षा दीन और वृक्ष के समान सहनशील बनकर भगवान् की सेवा करनी चाहिये । बड़ी कठिन
बात है । इसी से लोग इस पथपर नही चल सकते ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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