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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -६-
गत ब्लॉग
से आगे....भीख ही ऐश्वर्य शक्ति
को बुलाती है । जो ‘भिक्षायां नैव नैव च’ कहते है, वे भ्रम में ऐसा कहते है ।
यथार्थ भिखारी बन जाने पर तो तो ऐश्वर्य-शक्ति दौड़ी हुई आकर उसका आश्रय लेती है ।
इसी से तो जगददात्री अन्नपूर्णा राजराजेश्वरी भिक्षुकप्रवर महादेव की गृहिणी बनी
है ।
महापण्डित
महाप्रभु ने भिखारी बनकर ही-कंथा-कौपीन धारण करके ही-तर्काभिमान चूर्ण करके ही
अमूल्य ‘नीलकान्त-मणि’ को प्राप्त किया था । यह भिक्षा ही उसके राज्य की व्यवस्था
है । पूर्ण दीन, पूर्ण निरभिमानी हुए बिना वह प्रियतम नहीं मिल सकता । दीं बनकर
यही समझना होगा की ‘मेरा’ कुछ भी नहीं है । वही मेरा सर्वस्वधन है । ‘मैं’ कुछ भी
नहीं हूँ , विराटरूप से विश्व में एकमात्र वही विराजित है । वास्तव में वही तो
सबकी सत्ता (आत्मा) रूप से स्थित है ।
तुम और
मैं (देहेन्द्रियादी जडपिण्ड) पीछे से आकर उसको भगानेवाले कौन है ? हमे इतना घमण्ड
किस बात पर है ? यह मनुष्य की देह मिट्टीसे ही पैदा हुई है और एक दिन पुन: मिट्टी ही हो जायेगी । फिर
अभी से मिट्टी क्यों नहीं बन जाते । भगवान् के सखा अर्जुन ने मिट्टी होकर ही-दींन
बनकर कहाँ था-
शिष्यस्तेअहं
शाधि मां त्वां प्रपन्नम ।
इसलिए
गीताका अमृतमय उपदेश देकर भगवान् ने उसके ज्ञानचक्षु खोल दिए ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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