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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, अष्टमी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -९-
गत ब्लॉग
से आगे.... ब्राह्मणी बोली
‘स्वामिन ! मैं कहाँ कहती हूँ की आप उनके पास जाकर धन मांगे । मैं तो यही कहती
हूँ, जब वे आपके बालसखा है, तब एक बार उनसे मिलने में क्या हानि है ? आप उनसे कुछ
भी मांगिएगा नहीं ।’ स्त्री के बहुत समझाने-बुझाने पर सुदामा ने सोचा की चलो, इसी
बहाने मित्र के दर्शन तो होंगे और वे वहाँ से चल पड़े । थोड़े से चिउडों की कनी पल्ले
बाँध ली ।
सुदामा
जी द्वारका पहुचे । वहाँ के बड़े-बड़े सोने
के महलों को देखकर उनकी आँखे चौंधियां गयी । श्रीकृष्ण के महल पर पहुच कर उन्होंने
द्वारपाल से कहाँ, ‘जाओ, अपने स्वामी से कह दो की आपके एक बालसखा मिलने आये है ।’
महलों की छटा देखकर गरीब ब्राह्मण सोचने लगा की कहीं श्रीकृष्ण मुझे भूल तो नहीं
गए होंगे । परन्तु अन्तर्यामि से कुछ भी छुपा नहीं था । उनको पता लगा की पुराने
प्राणसखा सुदामा द्वार पर खड़े है । भगवान् पलंग पर लेट रहे थे, श्रीरुक्मणि जी
चरणसेवा कर रही थी । भगवान् चमक कर उठे और दरवाजे पर खड़े हुए बाल-बंधू को आदर के
साथ अन्दर लिवा लाने के लिए दौड़े । पटरानियाँ भी पीछे-पीछे दौड़ी ।
साधक !
तुम उनकी और एक पैर आगे बढोगे तो वे तीन पैर बढ़ेंगे । उनकी अतुल दया ऐसी ही है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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