Saturday 25 January 2014

सच्चा भिखारी -१०-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, नवमी, शनिवार, वि० स० २०७०

सच्चा भिखारी  -१०-


गत ब्लॉग से आगे....सखा को साथ लेकर भगवान् अन्तपुर में पधारे । पटरानियों ने मिलकर सुदामा के चरण धोये । उन्हें पलंग पर बिठाकर भगवान् स्वयं चमर डुलाने लगे । भगवान् ने प्रेम से कहाँ, ‘सखे बहुत दिन बाद तुम मिले हो, मेरे लिए क्या लाये हो ?’ सुदामा ने लज्जा से सर नीचे किया । इतने बड़े धनी को चिउडों की टूटी कनी देते सुदामा को बड़ा संकोच हुआ, परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण ने उनकी बगल से पुटलिया छीन ली और चिउड़ा फांकने लगे ।

भक्त के प्रेमभरे उपहार की वे उपेक्षा क्यों करते ? भगवान् ने एक मुट्ठी फांककर ज्यों ही दूसरी हाथ में ली, त्योही भगवती  रुक्मणिजी ने उन्हें रोक लिया । भगवान् मुट्ठी छोड़कर मुस्कुराने लगे । तदन्तर वे बोले-भक्तमाल रचयिता महाराज श्री रघुराज सिंहजी कहते है –

ऐसे सुनी प्यारी वचन, ज्दुनंदन मुस्काई ।

मन्द मन्द बोले वचन, आनन्द उर न समाई ।।

व्रज में यशोदा मैया मन्दिर में माखन औं ।

मिश्री मही मोहन त्यों मोदक मलाई है ।

खायों मैं अनेक बार तैसे मथुरा में आई,
व्यंजन अनेक  मोहि जननी जेवाई हैं ।

तैसे द्वारिका में जदुवंशिन के गेह-गेह,
सहित अनेक पायों भोजन में लाई है ।

रघुराज आजलों त्रिलोकहूँ में मीत ऐसी ,
राउर  के चाउरते पाई ना मिठाई है ।

खायों अनेकन यागन भागन मेवा रमा कर वागन ढीठे,
देवसमाज के साधुसमाज के लेत निवेदन नाही उबीठे ।

मीत जू साँची कहों रघुराज इते कस वै भये स्वाद ते सीठे,
पायों नहीं कतहूँ अस मैं जस राउर चाऊर लागत मीठे ।।

सुदामा के चिउडों की महिमा का वर्णन करने के बाद सभी सुदामा की सेवा में लग लाये । कुछ दिन मित्र के घर रहने के बाद सुदामा ने विदा माँगी । भगवान् ने संकोच से अनुमति दे दी । ब्राह्मण खाली हाथ लौट चले ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत 
 

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram