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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -१२-
भिखारी !
जगत की चुटकियों की और न देखों । जगत के अपमान की और दृष्टी मत डालों । विविद
विपत्तियों से डरकर मत कापों । तुम अपना काम अचल चित से किये जाओं । जितना ही
बढ़ा-विघ्न और संकट बढ़ेंगे, उतना ही यह समझों की तुम्हे गोद में लेने के लिए
जगत-जननी का हाथ तुम्हारी और बढ़ रहा है । स्नेहमयी माता पुत्र को गोद में लेने से
पहले अंघोछे से उसके शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ़ करती है ।
साधक !
इसी प्रकार जगतजननी भी तुम्हे गोद में लेने से पूर्व एक बार रगडेगी । इस रगड़ से
घबराना नहीं-डरना नहीं । यह समझना की, इस वेदना से तुम्हारी यम-वेदना विध्वंस हो
गयी है । इस कष्ट से तुम्हारा सारा कष्ट नष्ट हो गया है, अतएव साधक ! हताश न होना
!
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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