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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०
वशीकरण -६-
द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद
गत ब्लॉग
से आगे....मेरे पति महाराज
युधिष्ठर के महल में पहले प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों और हजारों स्नातक सोने के
पात्रों में भोजन किया करते और रहते । हजारों दासियाँ उनकी सेवा में रहती । दुसरे
दस हज़ार आजन्म ब्रह्मचारियों को सोने के थालों मेंउत्तम उत्तम भोजन परोसे जाते थे
। वैश्वदेव होने के अनन्तर मैं उन सब ब्राह्मणों को नित्य अन्न, जल और वस्त्रों से
यथायोग्य सत्कार करती थी ।
महात्मा
युधिष्ठर के एक लाख नृत्य-गीतविशारदा वस्त्राभूषणों से अलंकृत दासियाँ थीं । उन सब
दासियों के नाम, रूप और प्रत्येक काम के करने-न-करने का मुझे सब पता रहता था और
मैं उनके खाने-पीने और कपडे-लत्ते की व्यवस्था किया करती थी । महान बुद्धिमान
महाराज युधिष्ठर की वे सब दासियाँ दिन-रात सोने के थाल लिए अतिथियों को भोजन कराने
के काम में लगी रहती थी । जब महाराज नगर में रहते थे तब एक लाख हाथी और एल लाख
घोड़े उनके साथ चलते थे, यह सब विषय धर्मराज युधिष्ठर के राज्य करने के समय था ।
मैं सबकी गिनती और व्यवस्था करती थी और सबकी बात सुनती थी । महलों और बाहर के नौकर, गौ और भेड़ चरानेवाले
ग्वाले क्या काम करते है, क्या नही करते है, इसका ध्यान रखती थी । पाण्डवों की
कितनी आमदनी और कितना खर्च है तथा कितनी बचत होती है, इसका सारा हिसाब मुझे मालूम
था । ...शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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