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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण , अमावस्या, शनिवार,
वि० स० २०७०
सदाचार -१-
धर्मराज युधिष्ठर के पूछने पर भीष्म ने सदाचार का वर्णन इस
प्रकार किया-
दुराचारी, दुष्ट चेष्टावाला, दुष्टबुद्धि और घोर दुष्ट कामों
के करने में साहसी पुरुष ‘असत पुरुष’ कहलाता है । इसके विपरीत सदाचार में लगे हुए
पुरुष को ‘सत्पुरुष’ कहते है । जो पुरुष राजमार्ग में (आम रास्तोंपर), गौशाला में
और अन्न के ढेर के पास या अन्न से भरे खेत में मल-मूत्र का त्याग नही करते, नित्य
प्रात:काल शौचादि क्रियाओं के बाद मिट्टी-जल से भलीभाँती हाथ-पैर आदि धो कर नदी ने
स्नान-आचमन क्र शुद्ध जल से पितरों को तर्पण करते है, वे सत्पुरुष कहलाते है ।
जहाँ नदी नित्य कर्म करने चाहिये । नित्य सूर्य का उपस्थान,
सूर्योदय नित्य-कर्म करना चाहिये । नित्य सूर्य का उपस्थान, सूर्योदय होने पर न
सोना, प्रात:काल पूर्वाभिमुख होकर और सांयकाल पश्चिम की और मुख करके दोनों समय
नियम से संध्यावन्दन करना, भोजन के समय दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख धोकर पूर्व की
और मुख करके मौन धारण कर भोजन की निन्दा न करते हुए सात्विक और रुचिकर पदार्थ खाना,
भोजन के बाद हाथ धोकर , रात्रि में भीगे पैर न सोना-ये सभी सदाचार है । .... शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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