Monday, 10 March 2014

एक लालसा -४-


      ।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, नवमी, सोमवार, वि० स० २०७०

एक लालसा -४-

गत ब्लॉग से आगे..... प्रियतम की तुलना में उसकी दृष्टी से सभी कुछ तुच्छ हो जाता है, वह अपने आप को प्रियमिलनेइच्छा पर न्योछावर कर डालता है । ऐसे भक्तों का वर्णन करते हुए सत्पुरुष कहते है-

प्रियतम से मिलने को जिसके प्राण कर रहे हाहाकार ।

गिनता नही मार्ग, कुछ भी, दूरी को, वह किसी प्रकार ।।

नहीं ताकता, किन्न्चित भी, शतशत बाधा विघ्नों की और ।

दौड़ छूटता जहाँ बजाते मधुर वनश्री नदं किशोर ।।        

प्रियतम के लिए प्राणों को तो हथेली पर लिए घुमते है ऐसे प्रेमी साधक ! उनके प्राणों की सम्पूर्ण व्याकुलता, अनादी काल से लेकर अब तक की समस्त इच्छाए उस एक ही प्रियतम को अपना लक्ष्य बना लेती है ।
 
प्रियतम को पाने के लिए उसके प्राण उड़ने लगते है । एक सज्जन ने कहाँ की ‘जैसे बाँध के टूट जाने पर प्राणों में भगवतप्रेम के जिस प्रबल उन्मत वेग का संचार होता है, वह सारे बन्धनों को जोर से तत्काल हो तोड़ डालता है । ..शेष अगले ब्लॉग में

 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram