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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, तृतीया, मंगलवार,
वि० स० २०७०
सदाचार -४-
गत ब्लॉग से आगे......गुरु ही सब
तीर्थों का सार है और अग्नि सब पवित्र पदार्थों का निचोड़ है । शिष्ट पुरुष के आचरण पवित्र है
और गाय की पूछ के बालों का स्पर्श स्पर्श किये हुए पदार्थ पवित्र माने जाते है ।
अपने परिचितों से मिलने पर उनसे कुशल-समाचार पूछना और प्रात: सांय ब्राह्मणों को
प्रणाम करना मनुष्यमात्र का कर्तव्य है । देव-मन्दिरों में, गाय के बीच में,
ब्राह्मणों के कर्मों में, वेद-शास्त्रों के स्वाध्याय में और भोजन करते समय
द्विजों को दाहिना हाथ ऊपर रखना चाहिये ।
सवेरे-शाम नित्य ब्राह्मणों को
विधिपूर्वक पूजन करने से व्यापारियों की व्यापार में उन्नति होती है, किसानों की
खेती उत्तम होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है और इन्द्रिय-तृप्तिकारक उत्तम
पदार्थ प्राप्त होते है ।
ब्राह्मण को भोजन कराते समय यजमान अन्न परोसकर पूछे की ‘ठीक
है न ?’ तब भोजन करने वाला उत्तर दे ‘बहुत ठीक है’ जल देकर कहे ‘तृप्तिकारक है न ?’ तब पीने वाला
कहे की ‘सुतर्पण’ (बड़ा तृप्तिकारक है ) । पायस आदि देकर कहे ही ‘अच्छी बनी है न ?’
तब ब्राह्मण कहे की ‘शुश्रुतम’ (अच्छी बनी है ) ।.... शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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