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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ कृष्ण , अमावस्या, शुक्रवार,
वि० स० २०७१
भोगो के आश्रय से दुःख -४-
गत
ब्लॉग से आगे.......भूल होती है स्वाश्रित । दुसरे के आश्रय पर भूल नही रहती । भूल रहती है अपने आश्रय से । भूल जब समझ में आ गयी तो भूल नही
रहती । इसी प्रकार इस जगत का हाल है ।
यहाँ पर नित्य नयी समस्याएं, बहुत सी
समस्याए जीवन में उठती है और बहुत सी समस्याओं को लोग लेकर मिलते है, पर समस्याओं
के सुलझाने का कोई साधन अपने पास तो है नहीं, जब तक वे स्वयं अपनि समस्या को
सुलझाने को तैयार न हों । समस्या सुलझ नही सकती, वह तो ली हुई चीज है । बनायीं हुई
चीज है, अपनी निर्माण की चीज है और अपने संकल्प से वह विघटित है, उसको पकड़ रखा है,
आधार दे रखा है हमने स्वयं ।
हम उसको छोड़ दे अभी तो बस अभी शान्ति मिल जाय । हम जो
अनेक विषयों, अनेक पदार्थों, अनेक प्राणियों, अनेक परिस्तिथियों का अपने को दास
मानते है । अमुक अमुक परिस्थितियों के , प्राणियों के, पदार्थों के, अधिकार में जब
तक हम है; तब तक उन प्राणियों पर, पदार्थों पर, परिस्थितियों पर होने वाला परिणाम;
उनमे होने वाला परिवर्तन हम अपने में मानेगे और बिना हुए ही दुखी होते रहेंगे । पर
जब इनके न होकर हम भगवान् के हो जाय तो दुःख स्वयं विनष्ट हो जायेगा ।.... शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस
गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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