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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
अषाढ़ शुक्ल, नवमी, रविवार, वि० स० २०७१
वशीकरण -२-
द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद
गत ब्लॉग
से आगे....यशस्विनी सत्यभामा की
बात सुनकर परम पतिव्रता द्रौपदी बोली-‘हे सत्यभामा ! तुमने मुझे (जप, तप, मन्त्र,
औषध, वशीकरण-विद्या, जवानी और अन्जानादी से पति को वश में करने की ) दुराचारिणी
स्त्रियों के वर्ताव की बात कैसे पूछी ? तुम स्वयं बुद्धिमती हो, महाराज श्रीकृष्ण
की प्यारी पटरानी हो, तुम्हे ऐसी बाते पूचन औचित नहीं । मैं तुम्हारी बातों का
क्या उत्तर दूँ ?
देखों
यदि कभी पति इस बात को जान लेता है की स्त्री मुझपर मन्त्र-तन्त्र आदि चलाती है तो
वह साँप वाले घर के समान उसे सदा बचता और उदिग्न रहता है । जिसके मन में उद्वेग
होता है उसको कभी शान्ति नही मिलती और अशान्तों को कभी सुख नही मिलता । हे कल्याणी
! मन्त्र आदि से पति कभी वश में नहीं होता । शत्रुलोग ही उपाय द्वारा शत्रुओं के
नाश के लिए विष आदि दिया करते है । वे ही ऐसे चूर्ण दे देते है जिनके जीभ पर रखते
ही, या शरीर पर लगाते ही प्राण चले जाते है ।
कितनी ही
पापिनी स्त्रियों ने पतियों को वश में करने के लोभ से दवाईयां दे कर किसी को जलोदर का रोगी, किसी को कोढ़ी, किसी को बूढा,
किसी को नपुंसक, किसी को जड, किसी को अँधा और किसी को बहरा बना दिया है । इस
प्रकार पापियों की बात मानने वाली पापाचारिणी स्त्रियाँ अपने पतियों को वश करने
में दुखित कर डालती है । स्त्रियों को किसी प्रकार से किसी दिन भी पतियों का अनहित
करना उचित नही है । ...शेष
अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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