(१)
श्रीकृष्णके प्रेमोद्गार—श्री राधा के प्रति
(राग मालकोस-तीन ताल)
राधिके ! तुम मम जीवन-मूल।
अनुपम अमर प्रान-संजीवनि, नहिं कहुँ कोउ समतूल॥
जस सरीर में निज-निज थानहिं सबही सोभित अंग।
किंतु प्रान बिनु सबहि यर्थ, नहिं रहत कतहुँ कोउ रंग॥
तस तुम प्रिये ! सबनि के सुख की एकमात्र आधार।
तुहरे बिना नहीं जीवन-रस, जासौं सब कौ प्यार॥
तुहारे प्राननि सौं अनुप्रानित, तुहरे मन मनवान।
तुहरौ प्रेम-सिंधु-सीकर लै करौं सबहि रसदान॥
तुहरे रस-भंडार पुन्य तैं पावत भिच्छुक चून।
तुम सम केवल तुमहि एक हौ, तनिक न मानौ ऊन॥
सोऊ अति मरजादा, अति संभ्रम-भय-दैन्य-सँकोच।
नहिं कोउ कतहुँ कबहुँ तुम-सी रसस्वामिनि निस्संकोच।
तुहरौ स्वत्व अनंत नित्य, सब भाँति पूर्न अधिकार।
काययूह निज रस-बितरन करवावति परम उदार॥
तुहरी मधुर रहस्यमई मोहनि माया सौं नित्य।
दच्छिन बाम रसास्वादन हित बनतौ रहूँ निमिा॥
Saturday 23 September 2017
षोडश गीत
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment