[ ५ ]
दोहा
श्रीराधारानी-चरन बंदौं बारंबार।
जिन के कृपा-कटाच्छ तें रीझैं
नंदकुमार॥
जिन के पद-रज-परस तें स्याम होयँ
बेभान।
बंदौं तिन पद-रज-कननि मधुर रसनि के
खान॥
जिन के दरसन हेतु नित बिकल रहत
घनस्याम।
तिन चरननि में बसै मन मेरौ आठौं जाम॥
जिन पद-पंकज पर मधुप मोहन-दृग मँडऱात।
तिन की नित झाँकी करन मेरौ मन ललचात॥
‘रा’ अच्छर
कौं सुनत ही मोहन होत बिभोर।
बसै निरंतर नाम सो ‘राधा’ नित मन मोर॥
[ ६ ]
राग पीलू—ताल कहरवा
बंदौं श्रीराधा-चरन पावन परम उदार।
भय-बिषाद-अग्यान हर, प्रेम-भक्ति-दातार॥
[ ७ ]
राग पीलू—ताल कहरवा
श्रीराधारानी-चरन बिनवौं बारंबार।
बिषय-बासना नास करि, करौ प्रेम-संचार॥
तुम्हरी अनुकंपा अमित, अबिरत अकल अपार।
मोपर सदा अहैतुकी बरसत रहत उदार॥
अनुभव करवावौ तुरत, जाते मिटैं बिकार।
रीझैं परमानंदघन मोपै नंदकुमार॥
पर्यौ रहौं नित चरन-तल, अर्यौ प्रेम-दरबार।
प्रेम मिलै, मोय दुहुन के पद-कमलनि सुखसार॥
[ ८ ]
राग भैरवी—ताल कहरवा
बंदौं राधा-पद-कमल अमल सकल सुख-धाम।
जिन के परसन हित रहत लालाइत नित स्याम॥
जयति स्याम-स्वामिनि परम निरमल रस की
खान।
जिन पद बलि-बलि जात नित माधव
प्रेम-निधान॥
[ ९ ]
राग माँड़—ताल कहरवा
रसिक स्याम की जो सदा रसमय जीवनमूरि।
ता पद-पंकज की सतत बंदौं पावन धूरि॥
जयति निकुंजबिहारिनी, हरनि स्याम-संताप।
जिन की तन-छाया तुरत हरत मदन-मन-दाप॥
[ १०]
राग तोड़ी—तीन ताल
बंदौं राधा-पद-रज पावन।
स्याम-सुसेवित, परम पुन्यमय, त्रिबिध ताप बिनसावन॥
अनुपम परम, अपरिमित महिमा, सुर-मुनि-मन तरसावन।
सर्बाकर्षक रसिक कृष्नघन दुर्लभ सहज
मिलावन॥
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