Tuesday, 28 November 2017

पदरत्नाकर

[ १६ ]
राग खमाचतीन ताल

दयामयि स्वामिनि परम उदार! 
पद-किंकरि की किंकरि-किंकरि करौ मोय स्वीकार॥
दूर करौं निकुंज-मग-कंटक-कुस सब सदा बुहार।
स्वच्छ करौं तव पगतरि पावन, धूर-धार सब झार॥
देखौं दूरहि तैं तव प्रियतम संग सुललित बिहार।
नित्य निहारत रहौं, मिलै कछु सेवा की सनकार॥
पद-सेवन कौ बढ़ै चाव नित काल अनंत अपार।
अर्पित रहै सदा सेवा में अंग-अंग अनिवार॥
कबहुँ न जगै दूसरी तृस्ना, कबहुँ न अन्य बिचार।
रहै न कितहूँ कछु मेरौपन’, ‘अहंकारहोय छार॥
होयँ तुम्हारे मन के ही, बस, मेरे सब ब्यौहार।
बनौ रहै नित तुम्हरौ ही सुख मेरौ प्रानाधार॥

[ १७ ]
राग आसावरीतीन ताल

राधाजू!   मोपै आजु ढरौ।
निज, निज प्रीतम की पद-रज-रति मोय प्रदान करौ॥
बिषम बिषय-रस की सब आसा-ममता तुरत हरौ।
भुक्ति-मुक्ति की सकल कामना सत्वर नास करौ॥
निज चाकर-चाकर-चाकर की सेवा-दान करौ।
राखौ सदा निकुंज निभृत में झाड़ूदार  बरौ॥

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Ram