Sunday, 31 December 2017

पदरत्नाकर

[ ७२ ]
राग जोगियाताल आड़ा चौताल

भोगोंमें सुख है’—इस भारी भ्रमको हर लो, हे हरि!   सत्वर।
तुरत मिटा दो दु:खद सुखकी आशाओंको, हे करुणाकर!  ॥
मधुर तुम्हारे रूप-नाम-गुणकी स्मृति होती रहे निरन्तर।
देखूँ सदा, सभीमें तुमको, कभी न भूलूँ तुमको पलभर॥
ममता एक तुम्हींमें हो, हो तुममें ही आसक्ति-प्रीति वर।
बँधा रहे मन प्रेमरज्जुसे चारु चरण-कमलोंमें, नटवर!  ॥
दिखता रहे मधुर-मनहर मुख कोटि-कोटि शरदिन्दु-सुखाकर।
सुनूँ सदा मधुरातिमधुर मुनि-मन-उन्मादिनि मुरलीके स्वर॥
तन-मनके प्रत्येक कार्यसे पूजूँ तुम्हें सदा, हृदयेश्वर।
सहज सुहृद उदारचूड़ामणि!   दीन-हीन मुझको दो यह वर॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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