Thursday, 14 December 2017

पदरत्नाकर

[ ४४ ]
राग शिवभैरवतीन ताल

बसा रहे मन-मधुप निरन्तर राधा-माधवके पद-पद्म।
मत्त रहे रस-सुधा पानकर अविरत, त्याग सभी छल-छद्म॥
मधुर नाम-लीला-गुण-रसमें रसना रहे निरन्तर लीन।
श्रवण सतत गुण-नाम-श्रवणमें लगे रहें ज्यों जलमें मीन॥
सदा देखते रहें नेत्र सर्वत्र रूप-माधुर्य ललाम।
घ्राणेन्द्रिय हो धन्य लाभ कर नित प्रभु-तन-सुगन्ध अभिराम॥
पाती रहे त्वगिन्द्रिय उनका मङ्गलमय संस्पर्श महान।
ऐसा नित्य बना दें जीवन रसमय मधुर सहज भगवान॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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