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राग शिवभैरव—तीन ताल
बसा रहे मन-मधुप निरन्तर राधा-माधवके
पद-पद्म।
मत्त रहे रस-सुधा पानकर अविरत, त्याग सभी छल-छद्म॥
मधुर नाम-लीला-गुण-रसमें रसना रहे
निरन्तर लीन।
श्रवण सतत गुण-नाम-श्रवणमें लगे रहें
ज्यों जलमें मीन॥
सदा देखते रहें नेत्र सर्वत्र
रूप-माधुर्य ललाम।
घ्राणेन्द्रिय हो धन्य लाभ कर नित
प्रभु-तन-सुगन्ध अभिराम॥
पाती रहे त्वगिन्द्रिय उनका मङ्गलमय
संस्पर्श महान।
ऐसा
नित्य बना दें जीवन रसमय मधुर सहज भगवान॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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