[ ५७ ]
राग माँड़—ताल कहरवा
अर्पण मेरे हैं सदा तुममें जीवन-प्राण।
तुम्हीं एक आधार हो, तुम्हीं परम कल्याण॥
तुम ही मेरी परम गति, प्रीति बिना परिमाण।
मिलो तुरत, मेरा करो विरह-कष्टसे त्राण॥
[ ५८ ]
राग आसावरी—तीन ताल
मोपै गिरिधर! कृपा
करौ।
मोह-कूप में परयौ दुखी अति, प्रभु! संताप हरौ॥
मन अति मलिन, बुद्धि नित बिचलित, रति अघ औगुन भारी।
इंद्रिय सकल सदा कुबिषय-रत, तज मरजादा सारी॥
छलन चहौं अंतरजामी कौं, दुरित दुरंत दुराऊँ।
कपट साधु बन, रचि प्रपंच, निज धवल चरित्र दिखाऊँ॥
मन अति जरत काम-कोपानल, नहीं सांति छिन पाऊँ।
बाहर ते अति सांत बन्यौ, समता कौ स्वाँग रचाऊँ॥
ममता-मोह तुच्छ जग-बस्तुनि, चित्त उनहिं में अटक्यौ।
कबउ न पलभर लगत राम में, फिरत भूत ज्यौं भटक्यौ॥
मेरे अमित दोष-दुख भीषन रोम-रोम प्रति
छाये।
मिटैं नहीं तुम्हरी करुना बिनु
काहूकेउ मिटाये॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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