[ ५९ ]
राग भैरवी—ताल कहरवा
प्रियतम! बनकर
आओ चाहे झपक झपटते झंझावात।
घोर घोष करते चाहे बन आओ प्रलयंकर
पबि-पात॥
मन्द-सुगन्ध मलय-मारुत बन आओ चाहे
शुचि सुख-खान।
सौम्य सुधा बरसाते चाहे आओ बन सुधांशु
भगवान॥
देख भयंकर-सुन्दर रूप तुम्हारे विविध
विश्व-आधार।
लूँ तुरंत पहचान, न भूलूँ, किसी वेषमें तुम्हें निहार॥
नित्य नवीन रूप धर नटवर! लीला
तुम करते स्वच्छन्द।
पाता रहूँ प्रणत-पद-रज मैं नत-सिर
पल-पल लीलानन्द॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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