[ २४ ]
राग भीमपलासी—ताल कहरवा
राधा-नयन-कटाक्ष-रूप चञ्चल अञ्चलसे
नित्य व्यजित—
रहते, तो भी बहती
जिनके तनसे स्वेदधार अविरत॥
राधा-अङ्ग-कान्ति अति सुन्दर नित्य
निकेतन करते वास।
तो भी रहते क्षुब्ध नित्य, मन करता नव-विलास-अभिलाष॥
राधा मृदु मुसकान-रूप नित मधुर
सुधा-रस करते पान।
तो भी रहते नित अतृप्त, जो रसमय नित्य स्वयं भगवान॥
राधा-रूप-सुधोदधिमें जो करते नित नव
ललित विहार।
तो भी कभी नहीं मन भरता, पल-पल बढ़ती ललक अपार॥
ऐसे जो राधागत-जीवन, राधामय, राधा-आसक्त।
उनके चरण-कमलमें रत नित रहे हुआ मम मन
अनुरक्त॥
[ २५ ]
राग भैरवी—ताल कहरवा
जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन-मानस-चन्दन॥
बाँकी भौंहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर
परमहंस-मुनि-मन-कर्षी॥
अरुण अधर धर मुरलि, मधुर मुसकान मञ्जु मृदु सुधिहारी।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी॥
गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ, सुरभित सुमनोंकी माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित
ब्रजजन-ब्रजबाला॥
जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन॥
[ २६ ]
राग कालिंगड़ा—ताल कहरवा
जयति राधिकाजीवन, राधा-बन्धु, राधिकामय चिद्घन।
जय राधाधन, राधिकाङ्ग, जय राधाप्राण, राधिका-मन॥
जय राधा-सहचर, जय राधारमण, राधिका-चित्त-सुचौर।
जय राधिकासक्त-मानस, जय राधा-मानस-मोहन-मौर॥
जय राधा-मानस-पूरक, जय राधिकेश, राधा-आराध्य।
जय राधाऽराधनतत्पर, जय राधा-साधन, राधा-साध्य॥
जय सब गोपी-गोप-गोपबालक-गोधनके
प्राणाधार।
जय गोविन्द गोपिकानन्दन पूर्ण
सच्चिदानन्द उदार॥
[ २७ ]
राग भीमपलासी—ताल कहरवा
हे परिपूर्ण ब्रह्म! हे
परमानन्द! सनातन! सर्वाधार!
हे पुरुषोत्तम! परमेश्वर! हे
अच्युत! उपमारहित उदार॥
विश्वनाथ! हे
विश्वम्भर विभु! हे अज अविनाशी भगवान!
हे परमात्मा! सर्वात्मा
हे! पावन स्वयं ज्ञान-विज्ञान॥
हे वसुदेव-देवकी-सुत! हे
कृष्ण! यशोदा-नँदके लाल!
हे यदुपति! व्रजपति! हे
गोपति! गोवर्धनधर!
हे गोपाल!
मेरे एकमात्र आश्रय तुम, तुम ही एकमात्र सुखसार।
तुम्हीं एक सर्वस्व, तुम्हीं, बस, हो मेरे जीवन
साकार॥
कितने बड़े, उच्च तुम कितने, कितने दुर्लभ, दिव्य, महान।
गले लगाया मुझ नगण्यको, सब भगवत्ता भूल सुजान॥
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