Thursday, 21 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६१ ]
राग भीमपलासीताल मूल

करो प्रभु!   ऐसी दृष्टि-प्रदान।
देख सकूँ सर्वत्र तुम्हारी सतत मधुर मुसकान॥
हो चाहे परिवर्तन कैसा भीअति क्षुद्र, महान।
सुन्दर-भीषण, लाभ-हानि, सुख-दु:ख, मान-अपमान॥
प्रिय-अप्रिय, स्वस्थता-रुग्णता, जीवन-मरण-विधान।
सभी प्राकृतिक भोगोंमें हो भरे तुम्हीं भगवान॥
हो न उदय उद्वेग-हर्ष कुछ, कभी दैन्य-अभिमान।
पाता रहूँ तुम्हारा नित संस्पर्श बिना-उपमान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


Download Android App -  पदरत्नाकर

If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram