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राग जौनपुरी—तीन ताल
सबमें सब देखें निज आत्मा, सबमें सब देखें भगवान।
सब ही सबका सुख-हित देखें, सबका सब, चाहें कल्यान॥
एक दूसरेके हितमें सब करें परस्पर
निज-हित-त्याग।
रक्षा करें पराधिकारकी, छोड़ें स्वाधिकारकी माँग॥
निकल संकुचित सीमासे ‘स्व’ करे विश्वमें निज विस्तार।
अखिल विश्वके हितमें ही हो ‘स्वार्थ’ शब्दका शुभ संचार॥
द्वेष-वैर-हिंसा विनष्टहों, मिटें सभी मिथ्या अभिमान।
त्याग-भूमिपर शुद्ध प्रेमका करें सभी
आदान-प्रदान॥
आधि-व्याधिसे सभी मुक्त हों, पायें सभी परम सुख-शान्ति।
भगवद्भाव उदय हो सबमें, मिटे भोग-सुखकी विभ्रान्ति॥
परम दयामय! परम
प्रेममय! यही प्रार्थना बारंबार।
पायें सभी तुम्हारा दुर्लभ चरणाश्रय, हे परम उदार! ॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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