Wednesday 27 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६८ ]
राग काफीताल दीपचंदी

केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम!   देखूँ एक तुम्हारी ओर।
अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥
प्रभो!   एक बस, तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।
प्राणोंके तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥
भला-बुरा, सुख-दु:ख, शुभाशुभ मैं, न जानता कुछ भी नाथ!  ।
जानो तुम्हीं, करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥
भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस, जीवनसार।
आयें नहीं चित्त-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥
एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।
एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङ्गी एक॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 



Download Android App -  पदरत्नाकर

If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram