Tuesday, 5 December 2017

पदरत्नाकर

[ ३२ ]
दोहा

सोभित सिर सिखिपिच्छ, जो उज्ज्वल रस आधार।
बंदौं तिन के पद-कमल जुग सुचि भुवनाधार॥
महाभावरूपा परम बिमल प्रेम की खान।
बंदौं राधा-पद-कमल प्रियतम-सेव्य महान॥

[ ३३ ]
राग-पीलूताल कहरवा

राधा-माधव-पद-कमल बंदौं बारंबार।
मिल्यौ अहैतुक कृपा तें यह अवसर सुभ-सार॥
दीन-हीन अति, मलिन-मति, बिषयनि कौ नित दास।
करौं बिनय केहि मुख, अधम मैं, भर मन उल्लास॥
दीनबंधु तुम सहज दोउ, कारन-रहित कृपाल।
आरतिहर अपुनौ बिरुद लखि मोय करौ निहाल॥
हरौ सकल बाधा कठिन, करौ आपुने जोग।
पद-रज-सेवा कौ मिलै, मोय सुखद संजोग॥
प्रेम-भिखारी पर्यौ मैं आय तिहारे द्वार।
करौ दान निज-प्रेम सुचि, बरद जुगल-सरकार॥
श्रीराधामाधव-जुगल हरन सकल दुखभार।
सब मिलि बोलौ प्रेम तें तिन की जै-जैकार॥

[ ३४ ]
राग परजताल कहरवा

महाभाव-रसराज स्वयं श्रीराधा-माधव युगल-स्वरूप।
परम उपास्यदेव शुचि प्रेमीजनके नित्य नवीन अनूप॥
मदन अनन्त मनोहर, ज्ञानी-योगी-जन-मन-मोहन रूप।
सदा बसें मेरे मन-मन्दिर लोक-महेश्वर, सुरपति भूप॥

[ ३५ ]
राग माँड़ताल कहरवा

राधा-माधव-जुगल के प्रनमौं पद-जलजात।
बसे रहैं मो मन सदा, रहै हरष उमगात॥
हरौ कुमति सबही तुरत, करौ सुमति कौ दान।
जातें नित लागौ रहै तुव पद-कमलनि ध्यान॥
राधा-माधव!   करौ मोहि निज किंकर स्वीकार।
सब तजि नित सेवा करौं, जानि सार कौ सार॥
राधा-माधव!   जानि मोहि निज जन अति मति-हीन।
सहज कृपा तैं करौ नित निज सेवा में लीन॥
राधा-माधव!   भरौ तुम मेरे जीवन माँझ।
या सुख तैं फूल्यौ फिरौं, भूलि भोर अरु साँझ॥
तन-मन-मति सब में सदा लखौं तिहारौ रूप।
मगन भयौ सेवौं सदा पद-रज परम अनूप॥
राधा-माधव-चरन रति-रस के पारावार।
बूड्यौ, नहिं निकसौं कबहुँ पुनि बाहिर संसार॥

[ ३६ ]
राग आसावरीतीन ताल

हमारे जीवन लाड़िलि-लाल।
रास-बिहारिनि रास-बिहारी, लतिका-हेम तमाल॥
महाभाव-रसमयी राधिका, स्याम रसिक रसराज।
अनुपम अतुल रूप-गुन-माधुरि अँग-अँग रही बिराज॥
दोउ दोउन हित चातक, घन प्रिय, दोउ मधुकर, जलजात।
प्रेमी प्रेमास्पद दोउ, परसत दोउ दोउन बर गात॥
मेरे परम सेव्य सुचि सरबस दोउ श्रीस्यामा-स्याम।
सेवत रहूँ सदा दोउन के चरन-कमल अभिराम॥

[ ३७ ]
राग सारंगताल रूपक

बंदौं मधुर लाड़िलि-लाल।
रूप-रसके दिब्य अनुपम उदधि अमित बिसाल॥
स्याम घन तन, मुरलि कर बर, अधर मृदु मुसकान।
सिर मुकुट-सिखिपिच्छ सोहत, सुभग दृग रसखान॥
नित्य अतुल अचिंत्य गुन, सौंदर्य-निधि अभिराम।
रूप राधा मदनमोहन-हृदय-हरन ललाम॥
चंद्रिका सिर सोह-मोहन नयन, मुख मृदु हास।
कर रची मेंहदी, सजे तन दिव्य भूषन-बास॥
तरु-लता-पल्लव-सुमन-सिखि जुत अरन्य सुठाम।

स्याम-राधा मुदित ठाढ़े कदँब-तल सुखधाम॥

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Ram