Wednesday, 6 December 2017

पदरत्नाकर

[ ४०]
राग भीमपलासीताल कहरवा

श्यामा-श्याम युगल चरणोंमें करुण प्रार्थना है यह आज।
सुनो दयामयि!   करुणामय हे!   महाभावरूपा!   रसराज!  ॥
गोकुलचन्द्र, गोपिकावल्लभ, राधाप्रिय, हे आनँदकन्द!  ।
दिव्यरसामृत-सरिता जिनके रस-लोलुप सत्-चित्-आनन्द॥
मङ्गलमय यश सुनूँ तुम्हारा, करूँ नाम-यश-गुण नित गान।
उभय पाद-पद्मोंकी सेवा करूँ नित्य तज सब अभिमान॥
कृष्णप्रिया-शिरोमणि रसमयि!  रसमय प्रभु!  हे श्यामा-श्याम! ।
रहै बरसती कृपा तुम्हारी नित्य अधम जनपर अविराम॥
रक्खो सदा शरणमें ही निज इस पामरको विरद विचार।
जर्जर देह-प्राण-मन अब तो रहें न पलभर तुम्हें बिसार॥


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Ram