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राग जंगला—ताल कहरवा
हे मेरे! तुम, प्राण-प्राण! तुम, जीवनके जीवन-आधान।
‘मैं’ से रहित
बना दो मुझको, हर लो अहंकार-अभिमान॥
कर दो मुझे अकिंचन पूरा, हर लो सभी लोक-परलोक।
भर जाओ उर अमित ज्योति तुम! हर लो मिथ्या तम-आलोक॥
नटवर! नाचो मनमाने तुम, मुझे नचाओ
मन-अनुसार।
कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील
अनुपद अधिकार॥
कठपुतलीकी भाँति सर्वथा सम्मत, नीरव, वाक्य-विहीन।
नाचें
सभी अङ्ग-अवयव, हो तव रुचि रम्य रज्जु-आधीन॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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