Wednesday, 10 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७९ ]
राग जंगलाताल कहरवा

हे मेरे!  तुम, प्राण-प्राण!  तुम, जीवनके जीवन-आधान।
मैंसे रहित बना दो मुझको, हर लो अहंकार-अभिमान॥
कर दो मुझे अकिंचन पूरा, हर लो सभी लोक-परलोक।
भर जाओ उर अमित ज्योति तुम!  हर लो मिथ्या तम-आलोक॥
नटवर!  नाचो मनमाने तुम, मुझे नचाओ मन-अनुसार।
कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील अनुपद अधिकार॥
कठपुतलीकी भाँति सर्वथा सम्मत, नीरव, वाक्य-विहीन।
नाचें सभी अङ्ग-अवयव, हो तव रुचि रम्य रज्जु-आधीन॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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