Sunday, 14 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८३ ]
राग ईमनतीन ताल

प्रभु!   तुम अपनौ बिरद सँभारौ।
हौं अति पतित, कुकर्मनिरत, मुख मधु, मन कौ बहु कारौ॥
तृस्ना-बिकल, कृपन, अति पीड़ित, काम-ताप सौं जारौ।
तदपि न छुटत विषय-सुख-आसा, करि प्रयत्न हौं हारौ॥
अब तौ निपट निरासा छाई, रह्यौ न आन सहारौ।
एक भरोसौ तव करुना कौ, मारौ चाहें तारौ॥



-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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