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राग भूपाली—तीन ताल
कैसैं बिनय सुनावौं, स्वामी!
छिपी न कछु तुम सौं अंतर की, सब के अंतरजामी॥
सब बिधि हीन, मलिन-मति मोपै परम अनुग्रह कीन्हौ।
निज स्वभावबस मान, बिपुल जस, धन-बैभव बहु दीन्हौ॥
सब लोकनि में साधु कहायौ, भक्तराज पद पायौ।
रह्यौ बासना-बिबस निरंतर नित बिषयन
प्रति धायौ॥
कनक-कामिनी-रस-बस निसि-दिन सहज कुमारगगामी।
भूल्यौ परम अनुग्रह प्रभु कौ ऐसौ
नौंन-हरामी॥
हौं अति कुटिल, कृतघ्नी, कामी, नरक-कीट,
अघ-भार।
निज
दिसि देखि, बिरुद लखि, मोहि
उबारहु परम उदार॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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