Friday, 5 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७७ ]
राग भूपालीतीन ताल

मुझे प्रभु!  दो वह सुन्दर स्थान।
जहाँ गा सकूँ सरस तुम्हारा मैं अचिन्त यश-गान॥
जहाँ न हो मानापमानका तनिक भी कहीं भान।
जहाँ न हो स्तुति-निन्दा, प्रिय-अप्रियका तनिक विधान
जहाँ न हो बँटवारेको कुछ धन-धरणी-सामान।
जहाँ न हो नकली पर्दा, जो झूठ दिखावे शान॥
जहाँ सत्य नित रहे प्रकाशित, बिना बाहरी वेष।
जहाँ प्रेमका शुद्ध सुधा-रस बहता रहे अशेष॥
जहाँ सरल शुभकी धारामें सब बह जाय भदेस।
जहाँ भरा हो भगवदीय भावोंसे सारा देश॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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