Tuesday, 12 February 2019

पदरत्नाकर

[ ३८ ]
राग भैरवीताल कहरवा

श्रीराधामाधव!  कर हमपर सहज कृपावर्षां भगवान
ठुकरा सकें सभी भोगोंको जिससे, दें यह शुभ वरदान॥
सहज त्याग दें लोक और परलोकोंके हम सारे भोग।
लुभा सकें न दिव्य लोकोंके भोग, मोक्षका शुचि संयोग॥
बने रहें हम रज-निकुञ्जकी क्षुद्र मञ्जरीं सेवारूप।
सखी दासियोंकी दासी अतिशय नगण्य, अति दीन अनूप॥
पड़ती रहे सदा हमपर उन सखि-मञ्जरियोंकी पद-धूल।
    करती रहे कृतार्थ, बनाती रहे हमें सेवा-अनुकूल॥
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Ram