[ ३८ ]
राग भैरवी—ताल कहरवा
श्रीराधामाधव! कर हमपर सहज कृपावर्षां भगवान—
ठुकरा सकें सभी भोगोंको जिससे,
दें
यह शुभ वरदान॥
सहज त्याग दें लोक और परलोकोंके हम
सारे भोग।
लुभा सकें न दिव्य लोकोंके भोग,
मोक्षका
शुचि संयोग॥
बने रहें हम रज-निकुञ्जकी क्षुद्र
मञ्जरीं सेवारूप।
सखी दासियोंकी दासी अतिशय नगण्य,
अति
दीन अनूप॥
पड़ती रहे सदा हमपर उन
सखि-मञ्जरियोंकी पद-धूल।
करती
रहे कृतार्थ, बनाती रहे हमें
सेवा-अनुकूल॥
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