[ ४०]
राग भीमपलासी—ताल
कहरवा
श्यामा-श्याम युगल चरणोंमें करुण
प्रार्थना है यह आज।
सुनो दयामयि! करुणामय हे!
महाभावरूपा! रसराज! ॥
गोकुलचन्द्र, गोपिकावल्लभ,
राधाप्रिय,
हे
आनँदकन्द! ।
दिव्यरसामृत-सरिता जिनके रस-लोलुप सत्-चित्-आनन्द॥
मङ्गलमय यश सुनूँ तुम्हारा,
करूँ
नाम-यश-गुण नित गान।
उभय पाद-पद्मोंकी सेवा करूँ नित्य तज
सब अभिमान॥
कृष्णप्रिया-शिरोमणि रसमयि! रसमय
प्रभु! हे श्यामा-श्याम! ।
रहै बरसती कृपा तुम्हारी नित्य अधम
जनपर अविराम॥
रक्खो सदा शरणमें ही निज इस पामरको
विरद विचार।
जर्जर
देह-प्राण-मन अब तो रहें न पलभर तुम्हें बिसार॥
0 comments :
Post a Comment