Thursday, 14 February 2019

पदरत्नाकर

[ ४२ ]
राग जंगलातीन ताल

हे राधा-माधव!  तुम दोनों दो मुझको चरणोंमें स्थान।
दासी मुझे बनाकर रक्खो, सेवाका अवसर दो दान॥
मैं अति मूढ़, चाकरीकी चतुराईका न तनिक-सा ज्ञान।
दीन नवीन सेविकापर दो समुद उँडेल सनेह अमान॥
रजकण सरस चरण-कमलोंका खो देगा सारा अज्ञान।
ज्योतिमयी रसमयी सेविका मैं बन जाऊँगी सज्ञान॥
राधा-सखी-मञ्जरीको रख सम्मुख मैं आदर्श महान।
हो पदानुगत उसके, नित्य करूँगी मैं सेवा सविधान॥
झाड़ू दूँगी मैं निकुञ्जमें, साफ करूँगी पादत्रान।
हौले-हौले हवा करूँगी सुखद व्यजन ले सुरभित आन॥
देखा नित्य करूँगी मैं तुम दोनोंकी मोहनि मुसकान।
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1 comments :

Anonymous said... 16 March 2019 at 11:46

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Ram