Saturday, 28 March 2020

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4 naam jap kirtan radha krishan hanuman prasad poddar bhaiji

सायं प्रातस्तथा कृत्वा देवदेवस्य कीर्तनम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तः स्वर्गलोके महीयते॥

'मनुष्य सायं और प्रात:काल देवाधिदेव श्रीहरिका कीर्तन करके सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में सम्मानित होता है।'

नारायण नरो नराणां प्रसिद्धचौरः कथितः पृथिव्याम्।
अनेकजन्मार्जितपापसंचयं हरत्यशेषं श्रुतमात्रएव॥
(वामनपुराण)
'इस पृथ्वी पर नारायण नामक एक नर (व्यक्ति) प्रसिद्ध चोर बताया गया है, जिसका नाम एवं यश कर्ण-कुहरोंमें प्रवेश करते ही मनुष्य की अनेक जन्मोंकी कमाई हुई समस्त पाप राशि को हर लेता है।'

गोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्तिवर्जितैः ।
दहते सर्वपापानि  युगान्ताग्निरिवोत्थितः॥
(स्कन्दपुराण)
'मनुष्य भक्ति भाव से या भक्ति रहित होकर यदि गोविन्द-नामका उच्चारण कर ले तो वह नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध कर देता है, जैसे युगान्तकालमें प्रज्वलित हुई प्रलयाग्नि सारे जगत को जला डालती है।'

गोविन्दनाम्ना यः कश्चिन्नरो भवति भूतले।
कीर्तन देव तस्यापि पापं याति सहस्त्रधा॥

‘भूतल पर जो कोई भी मनुष्य गोविन्द-नामसे प्रसिद्ध होता है, उसके भी उस नामका कीर्तन करनेसे ही पाप के सहस्रों टुकड़े हो जाते हैं।'

प्रमादादपि संस्पृष्टो यथानलकणो दहेत्।
तथौष्ठपुटसंस्पृष्टं हरिनाम दहेदघम्॥

‘जैसे असावधानीसे भी छू ली गयी आगकी कणिका उस अंगको जला देती है, उसी प्रकार यदि हरिनामका ओष्ठपुटसे स्पर्श हो जाय तो वह पाप को जलाकर भस्म कर देता है।'

अनिच्छयापि दहति स्पृष्टो हुतवहो यथा।
तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपीरितम्॥
(पद्मपुराण)

'जैसे अनिच्छा से भी स्पर्श कर लेनेपर आग शरीरको जला देती है, उसी प्रकार किसी बहानेसे भी लिया गया गोविन्द-नाम पापको दग्ध कर देता है।

नराणां विषयान्धानां ममता कुल चेतसाम् ।
एकमेव हरेर्नाम सर्व पाप विनाशनम्॥
(बृहन्नारदीय०)

'ममतासे व्याकुलचित्त हुए विषयान्ध मनुष्यों के समस्त पापोंका नाश करनेवाला एकमात्र हरिनाम ही है।'

कीर्तना देव कृष्णस्य विष्णोरमिततेजसः ।
दुरितानि विलीयन्ते तमांसीव दिनोदये॥
(पद्मपुराण)
 'अमित तेजस्वी सर्वव्यापी भगवान् श्रीकृष्ण के कीर्तन मात्र से समस्त पाप उसी तरह विलीन हो जाते हैं, जैसे दिन निकल आनेपर अन्धकार।'

साङ्केत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा।
वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं विदुः॥
(श्रीमद्भागवत)
‘संकेत, परिहास, स्तोभ* या अनादरपूर्वक भी किया हुआ भगवान् विष्णु के नाम का कीर्तन सम्पूर्ण पापों का नाशक है-ऐसा महात्मा लोग जानते हैं।'
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*पुत्र आदिका गोविन्द, केशव या नारायण आदि संकेत (नाम) रखकर उसका उच्चारण करना 'साड्केत्य' है। उपहास करते हुए नाम लेना 'पारिहास्य' कहलाता है-जैसे कोई कहे,'राम-नाम' कहनेसे क्या होगा? इत्यादि। गीत आदिके स्वरको पूरा करनेके लिये किसी शब्दका (जिसका वहाँ कुछ अर्थ न हो) उच्चारण स्तोभ है, जैसे सामवेदमें 'इडा', 'होई' इत्यादि शब्द। ऐसे ही अवसर पर भगवान् का नाम लेना 'स्तोभ' है। अथवा शीत आदि से पीड़ित होनेपर बैठे-बैठे मुँहसे 'राम-राम' निकल गया-इस तरहका उच्चारण 'स्तोभ' है।


अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोकनाम् यत्।
संकीर्तन में पुंसो दही दे दो यथा नः॥

'जैसे अग्नि लकड़ीको जला देती है, उसी प्रकार जाने-अनजाने लिया गया भगवान पुण्यश्लोकका नाम पुरुष पापराशिको भस्म कर देता है ।

नाम्नोऽस्य यावती शक्ति: पापनिर्हरणे हरेः।
तावत् कर्तुम न शक्नोति पातकं पातकी जनः॥
(बृहद् विष्णु पुराण)

'श्रीहरिके इस नाम पापनाश करनेकी जितनी शक्ति है, उतना पातक पातकी मनुष्य अपने जीवनमें कर ही नहीं सकता।'

श्वादोऽपि नहि शक्नोति कर्तुं पापानि मानतः ।
तावन्ति यावती शक्तिर्विष्णुनाम्नोऽशुभक्षये॥

'भगवान विष्णु के नाम में पापक्षय करनेकी जितनी शक्ति विद्यमान है, माप-तौलमें उतने पाप कुक्कुरभोजी चाण्डाल भी नहीं कर सकता।'

नामसे रोग-उत्पात-भूत-व्याधि आदिका नाश


अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
‘अच्युत, अनन्त, गोविन्द-इन नामोंके का उच्चारण रूपी औषधि से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ।'

न साम्ब व्याधिजं दुःखं हेयं नान्यौषधैरपि।
हरिनामौषधं पीत्वा व्याधिस्त्याज्यो न संशयः॥

‘हे साम्ब! व्याधिजनित दुःख स्वतः छूटनेयोग्य नहीं है, इसे दूसरी औषधियों द्वारा भी सहसा नहीं दूर किया जा सकता, परंतु हरिनामरूपी औषधि का पान करनेसे समस्त व्याधियोंका निवारण हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।'

आधयो व्याधयो यस्य स्मरणान्नामकीर्तनात्।
तदैव विलयं यान्ति तमनन्तं नमाम्यहम्।।

‘जिनके स्मरण और नामकीर्तनसे सम्पूर्ण आधियाँ (मानसिक चिन्ताएँ) और व्याधियाँ तत्काल नष्ट हो जाती हैं, उन भगवान् अनन्तको मैं नमस्कार करता हूँ।'


मायाव्याधिसमाच्छन्नो राजव्याध्युपपीडितः।
नारायणेति संकीर्त्य निरातंको भवेन्नरः॥

'जो मायामय व्याधिसे आच्छादित तथा राजरोगसे पीड़ित है, वह मनुष्य नारायण-इस नामका संकीर्तन करके निर्भय हो जाता है।'

सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्।
शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्॥

'श्रीहरिके नामका बारम्बार कीर्तन समस्त रोगोंको शान्त करनेवाला, सारे उपद्रवोंका नाशक और सम्पूर्ण अरिष्टोंकी शान्ति करनेवाला है।'

संकीर्त्यमानो भगवाननन्तः श्रुतानुभावो व्यसनं हि पुंसाम्।
प्रविश्य चित्तं विधुनोत्यशेषं यथा तमोऽर्कोऽभ्रमिवातिवातः॥

'जिनकी महिमा सर्वत्र विश्रुत (प्रसिद्ध) है, उन भगवान् अनन्तका जब कीर्तन किया जाता है, तब वे उन कीर्तनपरायण भक्तजनोंके चित्तमें प्रविष्ट हो उनके सारे संकटको उसी प्रकार नष्ट कर देते हैं, जैसे सूर्य अन्धकारको और आँधी बादलोंको।'

आर्ता विषण्णाः शिथिलाश्च भीता घोरेषु च वर्तमानाः।
व्याधिषु संकीर्त्य नारायणशब्दमेकं विमुक्तदुःखा: सुखिनो भवन्ति॥

‘पीड़ित, विषादग्रस्त, शिथिल, भयभीत तथा भयानक रोगोंमें पड़े हए मनुष्य भी एकमात्र नारायण-नामका कीर्तन करके समस्त दःखोंसे छूटकर सुखी हो जाते हैं।’

कीर्तनादेव देवस्य विष्णोरमिततेजसः।
यक्ष राक्षस बेताल भूत प्रेत विनायकः ॥
डाकिन्यो विद्रवन्ति स्म ये तथ्य च हिंसका।
सर्वानर्थहरं तस्य नामसंकीर्तनं स्मृतम्।
नामसंकीर्तनं कृत्वा क्षुत्तृटप्रस्खलितादिषु।
वियोगं शीघ्रमाप्नोति सर्वानथैर्न संशयः॥

'अमित तेजस्वी भगवान् विष्णुके कीर्तनसे ही यक्ष, राक्षस, भूत, वेताल, प्रेत, विनायक (विघ्न), डाकिनी-गण तथा अन्य भी जो हिंसक भूतगण हैं, वे सब भाग जाते हैं। भगवान् का  नाम-संकीर्तन सम्पूर्ण अनर्थोंका नाशक कहा गया है। भूख-प्यासमें तथा गिरने, लड़खड़ाने आदिके समय भगवन्नाम-संकीर्तन करके मनुष्य सारे अनर्थों से छुटकारा  पा जाता है-इसमें संशय नहीं है।'

मोहानलोल्लसज्ज्वालाज्वलल्लोकेषु सर्वदा।
यन्नामाम्भोधरच्छायां प्रविष्टो नैव दह्यते॥

'मोहाग्निकी धधकती हुई ज्वालाओंसे सदा जलते हुए लोकोंमें जो भगवन्नामरूपी रूपी जालंधर की छाया में प्रविष्ट होता है, वह कभी नहीं दग्ध होता।'

  - परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार 

पुस्तक- श्रीभगवन्नाम-चिन्तन(कोड-338), गीताप्रेस, गोरखपुर 

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Ram